नई दिल्ली : श्रीलंका ने आज जोर दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध कोई विकल्प नहीं है तथा सीमा-पार आतंकवाद दक्षेस के लिए विचार विमर्श का एक प्रमुख विषय है एवं आठ देशों के समूह के सदस्यों को आगे बढ़ने के पहले इस पर तथा इसके असर के बारे में चर्चा करनी होगी।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति सहित प्रमुख क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की। इसके बाद मीडिया से बातचीत में उन्होंने जोर दिया कि अगर दक्षेस बिखर जाता है तो भी सीमा पार आतंकवाद समाप्त नहीं होगा, इसलिए भारत को गौर करना है कि इससे निपटते हुए किस प्रकार आगे बढ़ा जाए।
उन्होंने कहा कि सीमा पार आतंकवाद का विषय मेज पर है। दक्षेस को इस पर गौर करना है और जो हुआ (दक्षेस बैठक का रद्द किया जाना) उस पर विचार करना है। हम इसे किस प्रकार संचालित कर रहे हैं। दक्षेस को दो मुद्दों पर फैसला करना है सीमा पार आतंकवाद और वैसे क्षेत्र जिनमें हम मिलकर काम कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अगर हम ऐसा नहीं करते तो दक्षेस का कोई भविष्य नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के कारण समूह में कोई प्रगति नहीं हुई है।
उरी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव के आसार के बारे में पूछे जाने पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि युद्ध किसी के लिए भी कोई विकल्प है।’ उन्होंने कहा कि तनाव को दूर करने के लिए मोदी ने कई कदम उठाए हैं।
उनसे सवाल किया गया था कि इस्लामाबाद में दक्षेस बैठक के बारे में श्रीलंका ने विलंब से प्रतिक्रिया व्यक्त की और बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान की तरह वह पाकिस्तान प्रायेाजित सीमा पार आतंकवाद की निंदा में मुखर नहीं था। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान और बांग्लादेश की अपनी आंतरिक सुरक्षा की समस्या है तथा श्रीलंका के साथ यह मामला नहीं है। लेकिन कोलंबो ने कहा कि बैठक के लिए माहौल अनुकूल नहीं है।
विक्रमसिंघे ने जोर दिया कि श्रीलंका भी आतंकवाद से प्रभावित रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए कि सीमा पार आतंकवाद समाप्त हो। उन्होंने कहा कि चूंकि हमने इसे समग्र संदर्भ में देखा है, हमने आपकी सरकार से यह चर्चा की कि दक्षेस यहां से किस प्रकार आगे बढ़े, यह सुनिश्चित हो कि भारत या किसी अन्य देश में सीमा पार से कोई आतंकवाद नहीं हो।
इस बारे में कि अगर कोई सदस्य समूह से अलग हो जाता है तो क्या दक्षेस को बचाया जा सकता है, उन्होंने कहा कि अगर कोई देश छोड़ देता है तो यह दक्षिण एशिया एसोसिएशन नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि मुद्दों को संभालना होगा अन्यथा दक्षेस निष्क्रिय हो जाएगा। यह किसी के शामिल होने या छोड़ने का मुद्दा नहीं है। हमें ऐसा समाधान खोजना होगा जो सबको स्वीकार्य हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने दक्षेस बैठक के बारे में श्रीलंका को उसके रूख के लिए धन्यवाद दिया।
श्रीलंका-चीन संबंधों के बारे में उन्होंने कहा कि चीन के साथ संबंध आर्थिक हैं, न कि सैन्य तथा चीन उनके देश में आधारभूत ढांचे के विकास से जुडी परियोजनाओं में शामिल है। उन्होंने जोर दिया कि श्रीलंका ने सुनिश्चित किया है कि भूमि के लिए कोई फ्री-होल्ड अधिकार नहीं हो।
विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत अनूठा है और यह दक्षिण एशिया को एक बेहतर स्थान बना सकता है। यह भारत पर है कि वह ऐसा करना चाहता है या नहीं। उन्होंने कहा कि भारत एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है और श्रीलंका भारत के साथ मिलकर काम करेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या मोदी के साथ बैठक में मछुआरों के भावनात्मक मुद्दे पर भी चर्चा हुयी, उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा हुयी और यह दोहराया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों और मछुआरों के संगठनों के बीच चर्चा होगी।