नई दिल्ली : साल 2011 की जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, एक हजार मुस्लिम महिलाओं में से पांच महिलाओं के तलाक हुए हैं. माना जा रहा है कि ऐसा ‘तीन बार तलाक’ प्रथा के कारण हुआ है. वहीं हिंदुओं, सिखों और जैनियों में यह संख्या दो से तीन है.
आंकड़ों के मुताबिक, 20 से 34 साल की शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं का तलाक सबसे ज्यादा हुआ है. इस उम्र में बाकी समुदायों की तुलना में यह सबसे ज्यादा है. वहीं, ईसाईयों और बौद्धों में तलाक और पति या पत्नी से अलग रहने की दर सबसे ज्यादा है जबकि जैनियों में यह सबसे कम है. वहीं, हिंदुओं में मुस्लिमों की तुलना में ज्यादा अलगाव होता है.
हिंदुओं में कानूनी रूप से तलाक लेने की इज्जत तो है लेकिन समाज में अब भी इस तलाक लेने को अच्छा नहीं माना जाता. यही वजह हो सकती है कि हिंदुओं में शादीशुदा जोड़ों में अलगाव की दर एक हजार में से 5.5 फीसदी है. वहीं तलाक की दर 1.8 फीसदी है.
धार्मिक समुदाय और सेक्स जनगणना 2011 के वैवाहिक स्थिति रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि शादी के बाद तलाक लेने और अपने पतियों से अलग रहने के मामले में महिलाएं आगे हैं. आंकड़ों के मुताबिक शादी के बाद तलाक लेकर अलग रहने वाले 48.97 लाख लोगों में महिलाओं की संख्या 32.82 है.
एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि उनके पति ने 3 बार तलाक़ बोलने मात्र से उसे तलाक दे दिया है. उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो को उनके पति रिजवान अहमद ने अक्टूसबर में तलाक दे दिया था. इसके बाद बानो ने ‘तीन बार तलाक’ कहने की रीति को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने बानो की ‘तीन बार तलाक’ कहने को असंवैधानिक घोषित करने की अर्जी स्वीवकार कर ली थी. इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अर्जी के खिलाफ है और ‘तीन बार तलाक’ के पक्ष में है. बोर्ड का तर्क है कि मौखिक तलाक को असंवैधानिक करार देना उनके धार्मिक मामलों में हस्त क्षेप होगा.