नई दिल्ली : एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में कमजोर और अविकसित बच्चे भारत में हैं. भारत में इनकी संख्या 4.8 करोड़ है. इसकी वजह साफ-सफाई की खराब हालत और साफ शौचालयों व स्वच्छ पानी की कमी है.
अंतरराष्ट्रीय विकास दानदाता संस्था वॉटरएड ने ‘कॉट शॉर्ट-हाउ लेक ऑफ टॉयलेट्स ऐंड क्लीन वॉटर कॉन्ट्रिब्यूट टू मालन्यूट्रिशन’ नाम की रिपोर्ट जारी की है. इसमें कहा गया है कि भारत में 4.8 करोड़ बच्चे या पांच साल से कम उम्र के हर पांच में से दो बच्चे अविकसित हैं. इससे उनका शारीरिक, संज्ञात्मक और भावनात्मक विकास प्रभावित हो रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 1.03 करोड़ अविकसित बच्चों के साथ नाइजीरिया और 98 लाख ऐसे बच्चों के साथ पाकिस्तान दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं. दुनिया के सबसे नए देशों में से एक दक्षिण पूर्वी एशिया का पूर्वी तिमोर इस सूची में पहले स्थान पर है. यहां की आबादी के अनुपात में अविकसित बच्चों का प्रतिशत सबसे ज्यादा 58 फीसदी है. जीवन के पहले दो साल में बच्चे को कुपोषण होने के कारण कम विकास और कमजोरी की समस्या होती है और यह पूरे जीवन को प्रभावित करती है. उस उम्र के बाद इसे सुधारा नहीं जा सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी संख्या में लोगों के पास शौचालयों की पर्याप्त सुविधा नहीं है इसलिए भारत में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या भी सबसे ज्यादा है. शोध में पता चला है कि खुले में शौच और कमजोर बच्चों की बढ़ती संख्या में गहरा संबंध है. पर्यावरण में मौजूद मल हाथों और आस-पास के इलाकों को प्रदूषित कर देता है और इससे बीमारियां और संक्रमण फैलता है.
इसमें कहा गया है कि कुपोषण के लगभग 50 फीसदी मामलों की वजह संक्रमण, खासकर लंबे समय तक चलने वाला अतिसार है. यह साफ और सुरक्षित पानी की कमी और साबुन से हाथ नहीं धोने जैसी साफ-सफाई की कमी से होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के 1,40,000 बच्चे हर साल मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण होने वाले डायरिया संबंधी रोगों के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं. इसमें बताया गया है कि दुनियाभर में करीब 6.5 करोड़ लोगों के पास साफ पानी की सुविधा नहीं है और 23 लाख लोगों को मूलभूत सफाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है.