नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों ने मंगलवार को विजयदशमी के दिन अपने स्थापना दिवस के मौके पर अपने 90 साल पुरानी यूनिफॉर्म खाकी हाफ पैंट को त्यागकर भूरे रंग की फुल पैंट को अपना लिया। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने अपने गणवेश में 90 साल से शामिल खाकी निकर को छोड़कर ब्राउन रंग की पतलून पहन लिया। इस तरह से इस संगठन में एक पीढ़ीगत बदलाव आ गया, जिसे भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक माना जाता है। दशहरा पर संघ के स्थापना दिवस के मौके पर संघ की वेशभूषा में यह बदलाव आया।
विजयादशमी पर्व के मौके पर आयेाजित समारोह में खाकी निकर की बजाय भूरे रंग के फुल पैंट में पथ संचलन (मार्च) किया। नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में चल रहे इस समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी पहुंचे1
गौरतलब है कि संघ ने स्वयंसेवकों के लिए मोजों के रंग को बदलने की भी मंजूरी दे दी है और पुराने खाकी रंग की जगह गहरे ब्राउन रंग के मोजे इसमें शामिल हुए। हालांकि परंपरागत रूप से शामिल दंड गणवेश का हिस्सा बना रहेगा। जिन राज्यों में अधिक सर्दी पड़ती है वहां ठंड के मौसम में संगठन के स्वयंसेवक गहरे ब्राउन रंग का स्वेटर पहनेंगे। ऐसे एक लाख स्वेटरों का ऑर्डर दिया जा चुका है।
संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा कि विभिन्न मुद्दों पर संघ के साथ काम करने को लेकर समाज की स्वीकृति बढ़ती जा रही है और सुविधा के स्तर को देखते हुए वेशभूषा में बदलाव किया गया। यह परिवर्तन बदलते समय के अनुरूप ढलना दर्शाता है। उन्होंने बताया कि आठ लाख से अधिक ट्राउजर वितरित कर दिये गये हैं। इनमें छह लाख सिले हुए ट्राउजर हैं और दो लाख का कपड़ा है जो देशभर में संघ कार्यालयों पर पहुंचा दिये गये हैं। वैद्य ने बताया कि 2009 में गणवेश में बदलाव का विचार किया गया था लेकिन तब इस पर आगे काम नहीं हो सका। विचार-विमर्श के बाद 2015 में इस प्रस्ताव को फिर से आगे बढ़ाया गया और निकर की जगह ट्राउजर को वेशभूषा में शामिल करने की आम-सहमति बन गयी। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने इस प्रस्ताव पर कुछ महीने पहले मुहर लगाई थी।