नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार देश में समान आचार संहिता लागू करने की तैयारी कर रही है। इस संबंध में मोदी सरकार ने विधि आयोग से देश में समान आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने की स्थिति में उसके निहितार्थों की जांच करने के लिए कहा है। मोदी सरकार के इस कदम राजनीतिक गलियारों में गर्माहट आना तय मान जा रहा है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार आजादी के बाद यह पहला मौका है जब किसी सरकार ने समान आचार संहिता पर विधि आयोग से उसकी राय मांगी है।
कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने लॉ कमीशन को चिट्ठी लिखी है जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में स्टडी करके एक रिपोर्ट देने को कहा गया है। कानून मंत्री ने कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी के एजेंडे में है और संसद के बाहर और अंदर इस बारे में चर्चा होती रहती है। इसलिए इस मुद्दे पर सरकार ने आगे बढ़ने का फैसला लिया है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का मतलब ये है कि देश के हर नागरीक के लिए एक समान कोड होगा। शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के तहत करते हैं।
कई लोगों का ये मानना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने से देश में हिन्दू कानून लागू हो जाएगा। जबकि सच्चाई ये है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक ऐसा कानून होगा जो हर धर्म के लोगों के लिए बराबर होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा। ऐसी भी बातें कही जाती हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने के बाद लोगों की धार्मिक आज़ादी खत्म हो जाएगी। जबकि सच्चाई ये है कि समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता बाधित नहीं होगी बल्कि इसके लागू होने से सभी को एक समान नजरों से देखा जाएगा।
फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी क़ानूनों के तहत करते हैं। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़रिए लागू होता है।
निजी कानूनों का ये विवाद अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है। उस दौर में अंग्रेज, मुस्लिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव करके उनसे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे। आजादी के बाद साल 1950 के दशक में हिन्दू कानून में तब्दीली की गई लेकिन दूसरे धर्मों के निजी कानूनों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने में सबसे बड़ी समस्या ये है कि इसके लिए क़ानूनों में ढेर सारी तब्दीलियां करनी पड़ेंगी। दूसरी समस्या ये है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग वजहों से इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहती क्योंकि, ये उनके एजेंडे को सूट नहीं करता, जिसका नतीजा ये है कि देश आज भी अलग-अलग कानूनों में में बंधा हुआ है।
समझा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद शुरू होगा क्योंकि देश में समान आचार संहिता लागू करने को लेकर राजनीतिक पार्टियां एकमत नहीं हैं। समान आचार संहिता पर राजनीतिक दलों के अपने-अपने तर्क हैं।