नई दिल्ली : केन्द्रीय कैबिनेट ने एक अहम फैसले में रेल बजट को अलग से पेश किए जाने की परंपरा खत्मर कर दी है। यूं कहें तो 92 साल पुरानी रेल बजट परंपरा अब इतिहास बन गई। अगले वित्तीय वर्ष (2017-18) के लिए आम बजट में ही रेल बजट समाहित होगा।
बुधवार को नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने रेल बजट को वित्त बजट में ही समाहित करने का फैसला किया। इसे भारत की जीवनरेखा भारतीय रेल के लिए राहत भरा फैसला कहा जा रहा है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद रेलवे उच्च स्तरीय वेतन पर 40,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्ता भार से दबा हुआ है। रेलवे को 35,000 करोड़ रुपए का सब्सिडी बोझ भी उठाना पड़ता है। रेल बजट के आम बजट में विलय के बाद, रेलवे को वार्षिक लाभांश नहीं चुकाना पड़ेगा, जो कि अभी उसे सरकार द्वारा सकल बजटीय समर्थन के लिए चुकाना पड़ता है। कैबिनेट के फैसले के बाद रेलवे एक विभाग बन जाएगा जो व्यापारिक उपक्रम चलाता है, हालांकि इसकी अलग पहचान और काफी हद तक वित्तीाय स्वायत्ता् बनी रहेगी। अन्यु उपक्रमों से रेलवे को अलग करने वाले प्रावधानों को खत्मी कर दिया जाएगा। रेलवे को पूंजी खर्च करने के लिए आम बजट से बजटीय सहायता मिलती रहेगी।
वित्त मंत्रालय ने एक फरवरी को बजट पेश करने का प्रस्ताव रखा है। अभी तक फरवरी के आखिरी कार्यदिवस पर बजट पेश किया जाता है ताकि नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले प्रक्रिया पूरी की जा सके। वर्तमान व्यवस्था के तहत, बजट प्रक्रिया पूरी करने में देरी होती है, जिससे 1 अप्रैल को शुरू होने वाले नए वित्ती्य वर्ष में व्यथय प्रक्रिया विलंबित होती है। अगर बजट एक महीने पहले पेश किया जाता है तो पूरी प्रक्रिया अगला वित्तीय वर्ष पूरा होने से पहले खत्म की जा सकती है। इसका मतलब यह भी है कि संसद के शीतकालीन सत्र को पहले बुलाना होगा। चूंकि यह एक राजनैतिक मामला है, इसलिए प्रस्ताव को राजनैतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी जांचेगी। बजट सत्र की शुरुआत गणतंत्र दिवस के फौरन बाद हो सकती है। आर्थिक सर्वे पेश करने के साथ ही बजट प्रक्रिया की शुरुआत हो जाएगी।