नयी दिल्ली : संसद की एक समिति ने एक नए कानून को प्रस्तावित किया जिसके तहत किसी काम के एवज में ‘यौन सुख’ की मांग को रिश्वत के तौर पर माना जाएगा और इसके लिए दंड का प्रावधान होगा।
भ्रष्टाचार विरोधी नए विधेयक पर अपनी रिपोर्ट में राज्यसभा की प्रवर समिति ने विधि आयोग की रिपोर्ट का समर्थन किया है और प्रस्तावित कानून के एक प्रावधान में ‘अनुचित लाभ’ को शामिल करने की अनुशंसा की है ताकि कानूनी पारिश्रमिक से इतर यौन सुख समेत या किसी भी तरह से लाभ पहुंचाने को दायरे में लाया जा सके।
पहली बार संसदीय समिति ने कारपोरेट एवं उनके कार्यकारियों को प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत लाकर निजी क्षेत्रों की घूस को अपराध की श्रेणी में लाने की अनुशंसा की है। उसने जुर्माने के साथ सात साल तक की सजा का प्रावधान भी किया है।
इसके अलावा समिति ने घूस देने वालों के लिए सजा का सुझाव दिया है। घूसखोरी को भ्रष्टाचार निरोधक कानून-1988 के तहत कवर किया गया है। घूस लेने को परिभाषित करने का दायरा बढ़ाने और निजी क्षेत्र की घूसखोरी को कानून के तहत लाने के लिए सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक-2013 पेश करने का फैसला किया है। विधेयक में घूसखोरी संबंधी अपराधों को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल की गई शब्दावली ‘वित्तीय या दूसरा लाभ’ है।
पिछले साल नवंबर में कुछ संशोधन लाए गए ताकि ‘वित्तीय या दूसरा लाभ’ के स्थान पर ‘अनुचित लाभ’ की शब्दावली को शामिल किया जा सके और इसके माध्यम से ‘कानूनी दायरे से बाहर किसी तरह के लाभ’ को दंडनीय बनाया जा सके।
संसद के उपरी सदन राज्यसभा की प्रवर समिति ने विधेयक पर गौर किया और हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति के सदस्य भी महसूस करते हैं कि प्रस्तावित संशोधनों में ‘अनुचित लाभ’ की शब्दावली का अभिप्राय आर्थिक और गैरआर्थिक के फायदों से है और ऐसा लगता है कि इसका दायरा इतन बड़ा है कि सुरक्षा एजेंसियां की ओर से इसका दुरूपयोग किया जा सकता है।
समिति ने चिंता जताई है कि प्रवर्तन या जांच एजेंसियां इस कानून की व्याख्या का दुरूपयोग नौकरशाहों और सिविल सोसायटी के लोगों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं। उसने इस संदर्भ में उचित ऐहतियात बरतने की सलाह दी है।