नई दिल्ली : इस वर्ष जनवरी में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आत्महत्या करने वाला 26 वर्षीय रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला को लेकर नया खुलासा हुआ है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित जांच पैनल के मुताबिक रोहित दलित नहीं था। इस खबर से दलितों के नाम पर राजनीति करने वालों को झटका लगा है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रोहित अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से ताल्लुक नहीं रखता था। मानव संसाधन मंत्रालय ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के पूर्व न्यायधीश ए.के. रूपनवाल के नेतृत्व में एक पैनल ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूसीजी) को अगस्त के पहले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंपी हैं।
खबर के मुताबिक रिपोर्ट में जो बात सामने निकलकर आई है वही बात पहले केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज और थावरचंद गहलोत भी कह चुके थे। दोनों ही मंत्रियों ने कहा था कि रोहित अनुसूचित जाति से नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से था और तब रोहित की जाति वाडेरा बताई गई थी।
उल्लेखनीय है कि भारत में हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा पिछड़ा वर्ग है जो सामाजिक विकास की दौड़ में अपनी ही सवर्ण जातियों से पीछे रह गया था। दलित होना और पिछड़ा होना दोनों अलग अलग है। इस केस में रोहित की जाति का साफ होना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर अप्पा राव का नाम भी एफआईआर में शामिल है। दोनों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत एक एफआईआर भी दर्ज हुई है।
वहीं रोहित के भाई राजा ने जांच पैनल की इस टिप्पणी को खारिज करते हुए कहा है कि हम दलितों की तरह रहते हैं, हमारा पालन-पोषण दलित समुदाय में हुआ है। हां, मेरे पिता अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते थे, लेकिन जो भी हो हम इतना जानते हैं कि हम दलितों की तरह रहे हैं। हम सभी को जीवन में भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इस बात का जिक्र रोहित ने अपने पत्र में भी किया था।