लखनऊ : राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मसूद अहमद ने बीएसपी प्रमुख मायावती द्वारा मुसलमानों का वोट मांगे जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सत्ता में रहते हुए उन्हें मुसलमान भाइयों की याद नहीं आती है, अब उन्हें मुस्लिमों की याद आ रही है. बीएसपी के शासन में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई, यह लोग कैसे भूल जाएं.
डॉ. अहमद ने कहा कि मेरे शिक्षामंत्री रहते उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी. इसके बाद बीएसपी और एसपी दोनों ने इसे जरूरी नहीं समझा. मुअल्लिम की डिग्री जो बीटीसी के बराबर है, उसी आधार पर मेरे समय में नियुक्तियां हुईं. मायावती उस डिग्री को खत्म कराने की उद्देश्य से हाई कोर्ट गईं. हाई कोर्ट ने डिग्री धारकों के हक में फैसला सुनाया. इस पर मायावती जी सुप्रीम कोर्ट चली गईं. क्या अपनी इसी कार्यशैली के आधार पर मुसलमानों के वोट मांगने की हिम्मत कर रही हैं?
आरएलडी अध्यक्ष ने कहा कि कौन कहता है कि बीएसपी शासन काल में दंगे नहीं हुए? श्रावस्ती, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और मेरठ की जनता बीएसपी शासन के दंगों की गवाह है. श्रावस्ती में तो मुस्लिम औरतों को नंगा करके सड़कों पर घुमाया गया और उन्हीं महिलाओं के पीछे-पीछे बीएसपी के मंत्री चल रहे थे. उन्होंने कहा कि क्या यही बीएसपी की मुस्लिम हितैषी होने की पहचान है?
उन्होंने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि मायावती बहुमत न मिलने पर बीजेपी से मिलकर सरकार नहीं बनाएंगी? पिछला इतिहास गवाह है, इन्होंने सत्ता के लालच में बीजेपी से समझौता किया और मुस्लिम हितों को भुला दिया.डॉ. अहमद ने कहा कि अब मुसलमान भाई उसी की वोट देगा जो किसान, मजदूर और नौजवान सभी की बात करेगा.