रचना प्रियदर्शनी : गत वर्ष किसी राज्य चुनाव आयोग द्वारा देश में पहली बार किसी ट्रांस व्यक्ति को चुनावी जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। मणिपुर निर्वाचन आयोग द्वारा मणिपुर की ट्रांस मॉडल 27 वर्षीया बिशेष हुइरेम को ट्रांसजेंडर समुदाय को आम चुनाव में मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए नियुक्त किया था।
विशेष हुइरेम देश की पहली ऐसी ट्रांस मॉडल भी हैं, जिन्होंन वर्ष-2016 नवंबर महीने में थाईलैंड में आयोजित मिस इंटरनेशनल क्वीन ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बावजूद चुनावों में ट्रांसजेंडर समुदाय की कितनी भागीदारी रही, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जनगणना-2011 के अनुसार, भारत में ट्रांसजेंडर्स की कुल आबादी 4,87,203 है।
चुनाव आयोग की मानें, तो उनमें से मात्र 40,000 ट्रांसजेंडर्स ही मतदाता सूची में पंजीकृत है, यानी कि कुल ट्रांसजेंडर आबादी का मात्र 10 प्रतिशत। उनमें से भी मात्र 1,968 ने इस साल के लोकसभा चुनावों में मतदान किया।
बात करें बिहार की, तो यहां के बारे में कहा जाता है कि इस राज्य में पैदा होनेवाले बच्चे पैदाइशी राजनीतिज्ञ होते हैं। उनके शरीर में राजनीति लहू बन कर दौड़ता है। ऐसे में बिहार के ट्रांसजेंडर समुदाय को राजनीति की मुख्यधारा से वंचित क्यों रखा गया है, यह समझ से परे है। आखिर वे भी तो इसी धरती की पैदाइश है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में सबसे ज्यादा ट्रांसजेंडर मतदाता हैं। राज्य चुनाव आयोग की मानें, तो पटना में कुल 45,87,998 मतदाताओं में से राज्य के चार लोकसभा सीटों हेतु कुल पंजीकृत 516 ट्रांसजेंडर मतदाताओं में से गत वर्ष के आम चुनावों में कुल 360 मतदाताओं ने मतदान किया, जो कि राज्य की कुल ट्रांसजेंडर आबादी का 70 फीसदी है।
दूसरी ओर, पटना में ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए संघर्षरत संस्था ‘दोस्ताना सफर’ की अध्यक्ष ट्रांसवुमेन रेशमा प्रसाद का कहना है कि गत वर्ष जनवरी में प्रकाशित लोकसभा मतदाता सूची के अनुसार, बिहार राज्य में करीब 34,800 ट्रांसजेंडर्स खुद को पंजीकृत करवाने से वंचित रह गये हैं।
रेशमा की मानें, तो बिहार में करीब 40 हजार ट्रांसजेंडर 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं, जो कि वोट देने का अधिकार रखते हैं, लेकिन उनमें से केवल 5200 ही वोटर लिस्ट में पंजीकृत हैं। उनमें से भी केवल 2,406 वोटर्स को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी गयी है। यह संख्या राज्य में उनकी कुल जनसंख्या की मात्र 0.003% ही है। उनमें से मात्र 177 (राज्य में सर्वाधिक) ने मतदान में हिस्सा लिया। बाकी के 2794 ट्रांसजेंडर्स को स्त्री या पुरुष कैटगरी में डाल दिया गया है।
पटेल नगर, पटना निवासी संगीता किन्नर (38) का भी कहना है कि ”मैंने वोटर आइ कार्ड फॉर्म में ट्रांसजेंडर कैटगरी में अपना नाम दर्ज किया था, लेकिन मेरे वोटर आइडी कार्ड में मुझे पुरुष बताया गया है।”
मजेदार बात तो यह है कि इस वर्ष बिहार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इस सूची में ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या को जोड़ने के बजाय उन्हें घटा कर 2,344 कर दिया गया है, जबकि रेशमा का दावा है कि अकेले पटना में ही इनकी संख्या करीब 1500 से 2000 के बीच हैं।
मतदाता सूची में हुई इस गड़बड़ी को लेकर फिलहाल ट्रांसजेंडर समुदाय में बेहद रोष है। इसी वजह से इस बार के बिहार विधान सभा चुनावों में ट्रांसजेंडर समुदाय अपने एक प्रतिनिधि को पार्टी टिकट दिलाने के लिए लगातार अपनी आवाज बुलंद कर रहा है। गत वर्ष के लोकसभा चुनावों के आकड़ें यह भी बताते हैं कि बिहार से लोकसभा चुनावों में अब तक एक भी ट्रांसजेंडर उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरा है। उम्मीद है इस बार के राज्य विधानसभा चुनावों में उनकी इस मांग पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा गंभीरता से विचार किया जायेगा।
बता दें कि चुनाव आयोग ने वर्ष 2009 के आम चुनावों के बाद पहली बार मतदाता सूची में ट्रांसजेंडर्स को ‘अन्य’ श्रेणी में नामांकित करना प्रारंभ किया। वर्ष 2015 से ‘ट्रांसजेंडर’ श्रेणी के तहत उनका नामांकन किया जाने लगा। इस तरह से इस बार के लोकसभा चुनावों में पहली बार उन्होंने अपनी वास्तविक पहचान के साथ मतदान किया था।