फिल्म समीक्षा
नई दिल्ली : ड्रग्स की समस्या पर केंद्रित और सेंसर बोर्ड के साथ विवादों में रही फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ आज सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई। बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद रिलीज हुई इस फिल्म को देखने के लिए पहले दिन सिनेमाघरों में भारी संख्या में दर्शक पहुंचे। अभिषेक चौबे के निर्देशन में बनी इस फिल्म में शाहिद कपूर, करीना कपूर, आलिया भट्ट, दिलजीत दोसांझ और सतीश कौशिक मुख्य भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म के जरिए अभिषेक चौबे ने सिर्फ पंजाब की ही नहीं, बल्कि देश भर में फल-फूल रही ड्रग्स जैसी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने की एक ईमानदार कोशिश की है।
फिल्म में तीन कहानियां हैं। मूल कहानी रॉकस्टार टॉमी सिंह (शाहिद कपूर) की है, जो अपने गानों में ड्रग्स का महिमामंडन करता है। उससे प्रेरित युवा नशाखोरी से नष्ट हो रहे हैं। दूसरी कहानी बिहार की युवती बनी आलिया भट्ट की है जो पंजाब में ड्रग्स माफियाओं के चंगुल में फंस जाती है और तीसरी कहानी पुलिस अधिकारी बने सरताज सिंह (दिलजीत दोसांज) की है जिसका भाई नशे का शिकार होकर दम तोड़ देता है। डॉक्टर के रोल में करीना कपूर पुलिस अधिकारी सरताज सिंह के साथ मिलकर ड्रग्स के खिलाफ अभियान छेड़ती हैं। कुल मिलाकर फिल्म के केंद्र में ड्रग्स की समस्या है। ड्रग्स से पंजाब के युवा कैसे बर्बाद हो रहे हैं और राज्य में ड्रग्स का रैकेट किस तरह चल रहा है फिल्म में पूरा जोर इस बात पर है।
अभिषेक चौबे की इस फिल्म का फर्स्ट हॉफ काफी कसा हुआ सा लगता है लेकिन दूसरे हॉफ में वह बात नजर नहीं आती। फिल्म में गाली-गलौच, हिंसक दृश्यों की भरमार है। डॉर्क शेड से भरी फिल्म कई जगह उबाऊ महसूस होने लगती है। हालांकि, नाटकीयता और रोमांच का तड़का लगाकर फिल्म को मनोरंजक बनाने की भरपूर कोशिश की गई है लेकिन वास्तविक समस्या पर ज्यादा केंद्रित होने के चलते फिल्म डॉक्यूमेंट्री के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाई है।
अभिनय की अगर बात करें तो शाहिद कपूर ने टॉमी सिंह के किरदार को जीवंत बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। रॉक स्टार के लुक में शाहिद ने दमदार अभिनय किया है। पुलिस अधिकारी की भूमिका में दिलजीत दोसांज अपनी भूमिका से न्याय करते आए हैं तो आलिया भट्ट अपनी सादगी और सहजता भरे लुक से कहानी की मांग पर खरी उतरती हैं। फिल्म में करीना कपूर का रोल छोटा है फिर भी उन्होंने अपने काम को बखूबी निभाया है।
फिल्म का संगीत रिलीज से पहले ही सुपर हिट है। बैकग्राउंड स्कोर भी स्टोरी लाइन के साथ बखूब जाता है। ‘इक कुड़ी’ और ‘चिट्टा वे’ गाने सुनने में अच्छे लगते हैं।
कुल मिलाकर वास्तविक घटनाओं को पसंद करने वाले लोग इस फिल्म को देख सकते हैं। केवल मनोरंजन की चाहत रखने वाले लोगों को इस फिल्म से निराशा हाथ लगेगी। फिल्म में गाली-गलौच और हिंसक दृश्यों की भरमार है ऐसे में परिवार के साथ इस फिल्म को देखने में हिचक हो सकती है। चौबे की यह फिल्म एक अलग जोनर की फिल्म है जिसे बनाने के लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।
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