लखनऊ : अंसारी ब्रदर्स एक बार फिर नेताजी के अपने हो जाएंगे. विलय की तैयारी पूरी हो गयी है. इस बार हाथ ही नहीं, दिल भी मिल रहे है और इसी हफ्ते इस मिलन का एलान हो जाएगा. खबर है कि मुलायम सिंह यादव खुद लखनऊ में इस फैसले का एलान करेंगे.
कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय को लेकर पहली बार चाचा और भतीजा आमने सामने हुए थे और अब तक मुलायम परिवार में घमासान जारी है. शिवपाल यादव ने 21 जून को विलय कराया था और अखिलेश यादव इस फैसले के खिलाफ खड़े हो गए थे. बात इतनी बढ़ गयी कि मुलायम सिंह को पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक बुलानी पडी. इस मीटिंग में शिवपाल यादव अकेले पड़ गए अखिलेश की ज़िद के आगे किसी की नहीं चली और आखिरकार कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय 25 जून को ही रद्द हो गया. शिवपाल यादव खून का घूँट पी कर रह गए, नेताजी भी मौन रहे लेकिन अब सब कुछ बदल गया है.
बदले हुए माहौल में अखिलेश की जगह शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष बन गए है. पार्टी से लेकर सरकार के सभी बड़े फैसले मुलायम सिंह कर रहे है. उन्होंने मुख्तार की पार्टी के समाजवादी पार्टी में विलय को हरी झंडी दे दी है. अब वे चाहते है जल्द से जल्द इसका एलान भी हो जाए. अफ़ज़ाल अंसारी की बीमारी से अब तक एलान नहीं हो पाया था.
अब से छह साल पहले 2010 में कौमी एकता दल बना था. अफ़ज़ाल अंसारी इस पार्टी के अध्यक्ष है. उनके भाई मुख्तार और सिबगतुल्लाह अंसारी विधायक है. यूपी का बच्चा बच्चा मुख्तार को जानता है. पिछले ग्यारह साल वे जेल में बंद है, अंसारी भाईयों में सबसे छोटे मुख्तार पर बीजेपी विधायक की ह्त्या समेत दो दर्जन मुक़दमे है. वे पहले भी मुलायम और मायावती दोनों के साथ रह चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ वे वाराणसी से बीएसपी की टिकट पर लोक सभा का चुनाव भी लड़ चुके है. मुख्तार के बड़े भाई अफ़ज़ाल भी समाजवादी पार्टी के सांसद रह चुके है. . एक तरह से अंसारी ब्रदर्स की ये घरवापसी है. पूर्वांचल में गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली और बलिया ज़िलों में अंसारी एक बड़ा फैक्टर रहे हैं. पिछले 25 सालों से असेम्बली और लोक सभा चुनावों में अंसारी अपना दम दिखाते रहे है.
अंसारी फैक्टर पर सवार होकर मुलायम सिंह पूर्वांचल में मुस्लिम वोट के जुगाड़ में हैं. नेताजी को लगता है मुख्तार और अफ़ज़ल उनकी साइकिल थाम लेंगे लेकिन अखिलेश अब भी ऐसा नहीं चाहते है. विलय का विरोध करते हुए उन्होंने कहा था कि मुख़्तार जैसे नेताओं की हमें जरुरत नहीं, समाजवादी पार्टी में उनका क्या काम, लेकिन अब अगले चुनाव में अखिलेश और मुख्तार ज़िंदाबाद के नारे साथ साथ लगेंगे.