नई दिल्ली : मोदी सरकार अगले महीने से पीपीएफ जैसी बचत योजनाओं पर ब्याज दरें कम कर सकती है. हालांकि अभी ये एक अनुमान ही है. अगर सरकार अपने तय फॉर्मूले के हिसाब से ब्याज दरें तय करेगी तो 48 साल में पहली बार यानी 1968 के बाद पहली बार पीपीएफ पर ब्याज दर 8 फीसदी से नीचे चली जाएगी. दरों में ये कटौती 10 साल के सरकारी बॉन्ड के रिटर्न में कमी आने के कारण होगी.
दरअसल सरकार ही इस तरह की सेविेंग स्कीम्स का संचालन करती है और सरकार ने पीपीएफ, सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम्स और कई स्मॉल सेविंग स्कीम्स की ब्याज दर को सरकारी बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड से जोड़ा हुआ है. जिसके तहत असल में पीपीएफ का ब्याज बॉन्ड रिटर्न से 0.25 फीसदी ज्यादा रखने का फार्मूला है. चूंकि फिलहाल सरकारी बॉन्ड के मार्च से मई का औसत रिटर्न 7.5 फीसदी है तो इसे देखते हुए पीपीएफ की दर 7.75 फीसदी की जा सकती है.
सरकारी बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड में हर 3 महीने में बदलाव होता है और पिछली बार 19 मार्च को भी पीपीएफ की दरें घटाई गई थीं. उस समय पीपीएफ की दर 8.7 फीसदी से घटाकर 8.7 फीसदी कर दी गई थीं. हालांकि आगामी कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकार पीपीएफ पर दरें घटाने जैसा नकारात्मक फैसला नहीं लेगी क्योंकि जब पिछली बार स्मॉल सेविंग स्कीम्स और पीपीएफ पर ब्याज दरें घटाई गई थीं तो जनता में काफी आक्रोश देखा गया था. मई में सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम का ब्याज 9.3 फीसदी से घटाकर 8.6 फीसदी किया गया था और अब सीनियर सिटिजन योजनाओं पर ब्याज दर 8.6 फीसदी से घटकर 8.25 फीसदी हो सकती है. ऐसे में सीनियर सिटीजन्स को मिलने वाली पेंशन में बड़ी कमी हो जाएगी.
फिलहाल पीपीएफ को सबसे अच्छा निवेश विकल्प माना जाता है क्योंकि इसमें टैक्स फ्री रिटर्न मिल रहा है वहीं अगर पीपीएफ की ब्याज दरें कम हुईं तो इसका सबसे बुरा असर वरिष्ठ नागरिकों यानी सीनियर सिटीजन्स पर पड़ेगा.