बदलते वक्त के साथ चुनावों का तरीका भी काफी बदल गया है। पहले के समय में आज की तरह ना ही महंगी गाड़ियां थीं और ना ही नेता होटलों में ठहरते थे। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को लोग ही चावल-दाल और हजार-पांच सौ रुपये का चंदा दिया करते थे। पटना से मंत्री या विधायक गांव में प्रचार-प्रसार करने आते थे तो दरवाजे पर खाट, चटाई, पुआल पर दरी बिछाकर सो जाते थे। ऐसे में खातिरदारी करने का ज़िम्मा गांव वालों पर होता था।
वर्ष 1985 में कुछ इस तरह से चुनाव प्रचार कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे दिलकेश्वर राम ने किया था। दिलकेश्वर राम ने आदापुर में पांच दिन के प्रचार के दौरान एकडरी, कटगेनवा, महुआवा में चटाई पर सो कर रात गुजारी थी। अपनी यादों की किताब के पन्नों को पलटते हुए पूर्व विधायक हरिशंकर यादव बताते हैं कि चुनाव में कांग्रेस की ओर से मैं प्रत्याशी था। लोकदल से शमीम हाशमी और निर्दलीय ब्रजबिहारी प्रसाद चुनाव लड़ रहे थे। दस गांवों का एक दिन में पैदल भ्रमण करना था और सेंटर पर खाना भी नहीं बना था।
माड़, भात व साग खाकर निकले मंत्री
तत्कालीन मंत्री दिलकेश्वर राम जी एकडरी में सुबह एक व्यक्ति के घर माड़, भात, साग बनने की बात सुने थे। उन्हें देरी हो रही थी तो उन्होंने माड़, भात, साग भी मिल जाए तो खाकर जल्दी चला जा। यह सोच करके निकल गए थे। इसके बाद गांव के लोगों ने मंत्री जी को माड़, भात, साग खिलाया था और उसके बाद उनके साथ चुनाव प्रचार के लिए निकल पड़े थे।
50 हजार रुपये खर्च कर जीते चुनाव
श्री यादव बताते हैं कि 50 हजार रुपये खर्च करके हम चुनाव जीते थे। जिसमें पांच हजार रुपये जगन्नाथ मिश्रा और पांच हजार रुपये रामेश्वर बाबू ने दिये थे। साथ ही विधायक बनने से पहले श्री यादव जिला पार्षद के उपाध्यक्ष भी रहे थे। वह बताते हैं कि अब तो चुनाव में प्रत्याशी पानी की तरह पैसा बहाते हैं और अब तो पहले की तरह कार्यकर्ता भी नहीं रहे। जब नेता ही रातोंरात दल बदल देते हैं, तो कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता क्या रहेगी।