वीरा यादव : राजनीतिक दलों को किन्नरों का गुड लक चाहिए लेकिन जब राजनीति में भागीदारी की बात आती है तो यह मंजूर नहीं। बिहार विधानसभा चुनाव-2020 को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच काफी जिज्ञासा है। उनके मन में सवाल है कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव में वर्तमान सरकार और विपक्ष-प्रतिपक्ष पार्टी द्वारा अपने विधानसभा क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर्स के लिए कोई सीट आरक्षित किया जायेगा? क्या राज्य की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, उन्हें एक राज्य का नागरिक मानती हैं या नहीं?
हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र की रहनेवाली वीरा यादव का कहना है कि पक्ष हो या प्रतिपक्ष… दोनों ही ट्रांसजेंडर्स को अपने समाज या राज्य की आबादी नहीं मानते हैं। तभी तो वे केवल महिलाओं और पुरुषों को आरक्षण सीट की दावेदारी देते हैं और ट्रांसजेंडर्स की उपेक्षा कर देते हैं।
बिहार के अब तक के इतिहास में एक बार भी ट्रांसजेंडर्स के नाम से एक भी टिकट नहीं काटा गया है, न ही उन्हें चुनावी कार्यों की जिम्मेदारी दी गयी है। राज्य में कहने को तो सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड है, लेकिन उसके प्रशासनिक अधिकार की बात करें, तो वहां भी ट्रांसजेंडर्स का पलड़ा कमजोर है।
अगर ट्रांसजेंडर्स को भी लोकसभा और विधानसभा में सीट दिया जाये, तो निश्चित रूप से वे इस समुदाय के लोगों के लिए काम करेंगे। आम लोग को ट्रांसजेंडर समुदाय की जिन समस्याओं से परिचित नहीं है या अब तक अनभिज्ञ हैं, उन्हें वे जनप्रतिनिध राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर उठा पायेंगे। अपने समुदाय की बेहतरी की दिशा में एक स्वस्थ जनमत का निर्माण कर पायेंगे।
जिन राज्यों में स्थानीय निकायों के स्तर पर अब तक जो भी जनप्रतिनिधि चुने गये हैं, वहां ट्रांसजेंडर्स की स्थिति में जो थोड़े-बहुत सुधार हुए हैं, इसे उनके आधार पर समझा जा सकता है। अब तक सरकारी स्तर पर किये जानेवाले प्रयासों की बात करूं, तो सरकार आवाज उठाती ही कहां हैं। सिर्फ कागज दबा कर रख देती है। इस समुदाय की आवाज को बुलंद करने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय को प्रत्याशी के रूप चयनित कर इनकी आवाज को उठाना जरूरी है।
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