रचना प्रियदर्शिनी : भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसी कारण भारतीय संस्कृति के ज्यादातर पर्व त्योहार प्रकृति से संबंधित हैं। फिर चाहे होली, दशहरा, छठ हो या फिर मकर संक्रांति। यहां तक कि पिज्जा-बर्गर वाले जमाने के युवाओं को भी तिल-गुड़ की सोंधी खुशबू का स्वाद अपनी ओर खींचता है। खगोलीय आंकड़ों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। अर्थात सूर्य की स्थिति दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाती है।
”मीठे गुड़ में मिल गया तिल
उड़ी पतंग और खिल गया दिल
आपके जीवन में आये हर दिन सुख-शांति
मुबारक हो आप सभी को मकर संक्रांति !!
इसी मौसम में धान, गन्ना और तिल की नयी फसल काटी जाती है और इसके लिए प्रकृति देवता को इसके लिए आभार प्रकट करने के उद्देश्य से ही मकर संक्रांति पर्व की अवधारणा गढ़ी गयी है। गुनगुनी ठंड में तिल, गुड़, मूंगफली, चूड़ा, दही, मटर, गोभी, विभिन्न तरह के साग-पात आदि सहित खाने-पीने के कई सारे विकल्प मौजूद होते हैं।
मकर संक्रांति का त्योहार आते ही लगभग हर दूसरे या तीसरे घर से तिल-गुड़ की सोंधी खुशबू, मूंगफली के चटकने की आवाज और बासमती चूड़े मदमस्त महक आने लगती है। रही बात स्वाद की, तो पिज्जा-बर्गर के जमानेवाले आज के युवाओं में इन चीजों का क्रेज भले थोड़ा कम हो गया हो, लेकिन तिलकुट, गजक, तिल के लड्डू, मूंगफली पट्टी, मस्का आदि को देख कर आज भी उनके मुंह से लार टपक ही जाता है। आज के इस अंक में मकर संक्रांति के बहाने जानें ऐसे की कुछ हेल्दी फूड्स के बारे में।
छोटे तिल के फायदे हैं बहुत बड़े
तिल देखने में भले बहुत छोटा हो, लेकिन इसके फायदे काफी बड़े होते हैं। तिल शरीर को गर्माहट देता है और कैल्शियम की आपूर्ति भी करता है। सुबह-शाम तिल चबाने से दांत और हड्डियां मजबूत होती हैं। तिल के तेल में खाना बनाने से दिल भी स्वस्थ रहता है।
तिल में मौजूद लवण जैसे- कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम आदि की मांसपेशियों को एक्टिव और मजबूत रखता है। त्वचा को जरूरी पोषण देता है और उसकी नमी बरकरार रखता है। तिल को कूटकर खाने से कब्ज की समस्या नहीं होती। तिल हमारे मानसिक तनाव और डिप्रेशन को कम करने में सहायक है। तिल खाने से, बालों का असमय पकना और झड़ना बंद हो जाता है।
सेहत के साथ सौंदर्य के लिए भी फायदेमंद है दही
प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर दही दांतों और हड्डियों के साथ-साथ स्किन के लिए भी बेहद फायदेमंद है। दही में चीनी मिला कर खाने से खून की कमी दूर होती है। दही शरीर के हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
दही, गर्भवती महिलाओं के ब्लड सेल्स और हिमोग्लोबिन नियंत्रित रखते में कारगर है। दही के सेवन से लंबे समय तक भूख का एहसास नहीं होता, जिस कारण यह वजन को नियंत्रित रखने में मदद करता है। हफ्ते में दो बार दही का सेवन करनेवाले हाइ बीपी से पीड़ित लोगों में हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम काफी कम रहता है।
चूड़ा-दही खाने से लंबे समय तक नहीं लगती भूख
बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश में कई इलाकों में इस ग्लूटेन फ्री आहार को नाश्ते के रूप काफी पसंद किया जाता है. इसके सेवन से लंबे समय तक आपको भूख नहीं लगती। यह पचने में भी काफी आसान होता है। शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है और आंतों को स्वस्थ्य रखता है।
चूड़ा में जहां फाइबर सामग्री की प्रचुरता होती है, वहीं दही यानी योगर्ट में कैल्शियम, प्रोटीन, लैक्टोज, आयरन, फास्फोरस जैसे रासायनिक पदार्थ पाये जाते हैं, जो कि हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद हैं। दही खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
जोड़ों के दर्द के लिए फायदेमंद है मूंगफली
‘गरीबों का काजू’ के नाम से प्रसिद्ध मूंगफली सेहत का खजाना छिपा है। प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन-डी, विटामिन-इ, विटामिन-बी6 और ओमेगा-6 से भरपूर मूंगफली के नियमित सेवन से शरीर में खून की कमी नहीं होती है। बालों को मुलायम बनाता है और त्वचा में कसावट लाता है।
मूंगफली शरीर के ब्लड शूगर को भी कंट्रोल करता है। अल्जाइमर, डिप्रेशन, सर्दी-खांसी सहित कैंसर की बीमारी से लड़ने में भी मूंगफली मदद करता है। गर्भवती महिलाओं के लिए मूंगफली खाना बहुत फायदेमंद होता है। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होता है।
त्वचा के लिए प्राकृतिक क्लींजर का काम करता है गुड़
‘नेचुरल मिठाई’ के नाम से जाना जानेवाला गुड़ त्वचा के लिए प्राकृतिक क्लींजर का काम करता है। गुड़ में विटामिन-ए, विटामिन-बी, सुक्रोज, ग्लूकोज, आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जस्ता, मैग्नेशियम तथा फॉस्फोरस पाया जाता है। गुड़ हड्डियों को मजबूत बनाने के साथ ही शरीर को मजबूत व एक्टिव रखता है। शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। इस लिहाज से जाड़े के मौसम में इसका सेवन बेहद लाभकारी है।