नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के अनुसार अगर किसी शख्स को एक से ज़्यादा धाराओं में उम्रकैद की सज़ा मिली है तो ये सभी सज़ाएं एक साथ चलेंगी. ऐसा नहीं हो सकता कि वो हर अपराध के लिए अलग-अलग उम्रकैद की सजा काटे. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिया है.
प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कानून से जुड़े कई सवालों पर यह फैसला दिया है. हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा है कि अगर उम्रकैद के साथ किसी दूसरी धारा में कम सज़ा सुनाई गई है तो उनका साथ चलना ज़रूरी नहीं. फैसला सुनाने वाले जज चाहे तो पहले कम सज़ा के लिए जेल में रहने के बाद उम्रकैद का आदेश दे सकता है.
मामला तमिलनाडू के मुथुरामलिंगम समेत उसके परिवार के 16 सदस्यों का है. इन सबको मुथुरामलिंगम की पत्नी और 7 रिश्तेदारों की हत्या के मामले में कुल 8 उम्रकैद की सज़ा दी गई थी. यानी हर हत्या के लिए 1 उम्रकैद. इसके अलावा सभी को हत्या के प्रयास के लिए 10-10 साल की सज़ा दी गई थी. मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने सभी सज़ाएं अलग-अलग काटने का आदेश दिया था.
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को मान लिया है कि जीवन एक ही होने की वजह से एक के बाद एक उम्रकैद की सज़ा काटने का आदेश देना सही नहीं है. हालांकि, इस फैसले के बाद भी मुथुरामलिंगम और बाकि 15 दोषियों को पहले 10 साल की सज़ा काटने के बाद उम्रकैद की सज़ा भोगनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ किया कि उम्रकैद की सज़ा देते वक्त जज पूरी उम्र जेल में रहने का आदेश दे सकता है. साथ ही, जज अगर चाहे तो सज़ा की मियाद 14 साल से ज़्यादा रख सकता है.