पटना। इस समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसा राजनीति का धुरंधर खिलाड़ी कोई नहीं है। सभी पार्टियों के नेता नीतीश के बारे में यह मान चुके हैं कि नीतीश कब किधर करवट लेंगे, कोई नहीं जानता। नीतीश के बारे में अब यह एक आम राय बन चुकी है कि वो अपने मन की ही करते हैं और किसी के दबाव के सामने झुकते नहीं हैं।
नीतीश राजनीति के महारथी हैं। वह एक साथ दो नावों की सवारी कर रहे हैं। ऐसी राजनीतिक कुशलता कुछ ही राजनेताओं में होती है। सत्ताधरी दलों के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी साध लेने की कला सिर्फ नीतीश ही जानते हैं।
जब नीतीश UPA गठबंधन में शामिल थे, तब वह NDA गठबंधन के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का ऐलान करते हैं और जब बिहार में उनकी NDA के साथ सरकार बन गई है तो उन्होंने UPA गठबंधन के उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है।
इतना ही नहीं, UPA गठबंधन में रहते हुए उन्होंने अन्य विपक्षी दलों के विपरीत जाकर मोदी सरकार के नोटबंदी और जीएसटी का भी समर्थन किया।
यह नीतीश मार्का राजनीति है कि कैसे सभी दलों को अपने पक्ष में रखा जाए ताकि मौका पड़ने पर सहुलियत के हिसाब से किसी भी तरफ का रुख किया जा सके।
नीतीश दो नावों पर सवार हैं लेकिन एक बात नीतीश के बारे में जरूर कहीं जा सकती है कि वह अपने सुशासन बाबू की छवि के साथ कोई समझौता नहीं कर सकते हैं। नीतीश की राजनीति की बुनियाद ही सुशासन और न्याय पर टिकी हुई है और हर बार बिहार की जनता को उन्होंने यही संदेश देने की कोशिश की है।