डेस्क : मीडिया छात्रों को तकनीकी शब्दों से परिचय कराने की आवश्यकता है। शिक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग (उच्च शिक्षा आयोग) के तत्वाधान में आयोग की हीरक जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में “जनसंचार तकनीकी शब्दावली : शिक्षण, कार्यक्षेत्र एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रयागराज के मानित विश्वविद्यालय, नेहरू ग्राम भारती के कुलपति प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने कक्षा पांच तक की शिक्षा को निजी भाषा में देने का संकल्प किया है। यह सरकार द्वारा एक सराहनीय कदम है। साथ ही नई शिक्षा नीति को लागू करने के विभिन्न पक्षों पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसमें शिक्षक की भूमिका बहुत बड़ी है। इसके विभिन्न चुनौतियों को भी समझना होगा और उसके समाधान की दिशा में कार्य करने की जरूरत होगी।
इन तमाम चुनौतियों में से एक चुनौती यह है कि हम शिक्षा के लिए डिजिटल सामग्री कैसे खोजें? दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में कितनी सामग्री उपलब्ध है? तीसरी मातृभाषा की स्वरूप कैसे विकसित हो? ट्रेनिंग और विकास की चुनौती और वंचितों तक इसकी पहुंच आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। क्षेत्रिय जरूरत के अनुसार शिक्षा बनें, जिसमें भ्रम की स्थिति न हो और वैश्विक विमर्श के डिजिटल डिवाइड को कम किया जा सके। साथ ही उन्होने सभी सामग्री क्षेत्रीय भाषा में तैयार करने की जरूरत पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने शिक्षा को गांधी और विवेकानंद के व्यक्तित्व के संवाद से जोड़ा।
उन्होंने कहा कि शब्दों को एक रथ की जरूरत पड़ेगी, जिससे भाषा की अराजकता को भी दूर किया जा सकता है। जनसंचार की भाषा को अधिक समृद्ध और सार्थक बनाना होगा। इसके लिए व्याकरण सम्मत शब्दावली का प्रयोग करना होगा। उन्होंने शिक्षकों में भाषा के भंडार और शब्दों के संस्कार को व्यापक करने पर भी ज़ोर देते हुए कहा कि हमें संभावना और आशंका में अंतर को समझते हुए सही शब्दों का संधान करना होगाऔर सार्थक और सटीक शब्दों के प्रति हमें आग्रही बनाना होगा।
वहीं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालाय,भोपाल के कुलपति एवं भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक माननीय अतिथि प्रो. के. जी. सुरेश ने कहा कि भारतीय भाषा में ही भारतीय मीडिया का भविष्य है। अंग्रेजी मीडिया चैनलों में अब हिंदी में भी बुलेटिन दिखाए जा रहे हैं, यह एक तरह से हिंदी भाषा के बढ़ते प्रचार-प्रसार का ही परिणाम है। ऐसे में भाषा के महत्व के साथ-साथ लोगों की रुचि भी बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि हमारी भाषाओं में शब्दों का अभाव नहीं है, बस इसे प्रयोग में लाने की जरूरत है। मीडिया छात्रों को तकनीकी शब्दों से परिचय कराने की आवश्यकता है। नई-नई शब्दावली को लेकर अलग-अलग विभागों के साथ प्रशिक्षण कार्य करने की आवश्यकता है, जिसमें हम देशभर के संकाय सदस्यों के साथ मिलकर तकनीकी शब्दों से परिचित करा सकते हैं।
इसके अलावा मीडिया साक्षरता कार्यक्रम को विद्यालय स्तर पर शुरू करने की भी जरूरत है, जिससे मीडिया और इसकी तकनीकी भाषा को समझा जा सकेगा और इसे बेहतर करने दिशा में एक प्रयास किया जा सकता है। उन्होने आयोग को इस बाबत टीम बनाने का भी सुझाव दिया और कहा कि उनका विश्व विद्यालय आयोग के साथ मिलकर कार्य करने के लिए तैयार है ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज की प्राचार्य प्रो. रमा सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक तरह से हमारी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। इस समय हिंदी पूरे देश में सबसे अधिक बोली जाती है, लेकिन इसके साथ-साथ हमें सभी भाषाओं का भी सम्मान करना होगा। हमें अपनी भाषा के सम्मान को बढ़ाना भी है।
उन्होंने आगे कहा कि भाषा की संरचना के मूल अधिकार के साथ खिलवाड़ करना किसी को हक नहीं है। भाषा एक संस्कार होती है। आयोग को भाषा से संबंधित निर्देशिका जारी करने की जरूरत है और उसे अनुवाद के कार्य से भी जोड़ना होगा। आयोग को लेखक और अनुवादक में सेतु का काम करना होगा, जिससे शब्दों को व्याकरण सम्मत को बेहतर किया जा सके।
वहीं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केंद्र भोपाल के पूर्व निदेश प्रो. महावीर सिंह ने कहा कि किसी भी भाषा का पूरा पूरा उत्थान उसके शब्दों पर ही आधारित होता है। हम अन्य भाषाओं के जिन शब्दों को अपनी भाषा में शामिल करते हैं उन शब्दों की लोक स्वीकृति होनी चाहिए। अभी भी हम हिन्दी को एक ऐसी मानक भाषा के रूप में विकसित नहीं कर पाए हैं जो बोलने, लिखने और मीडिया कार्य हेतु समान रूप से प्रयुक्त की जा सके।
अपनी हिन्दी भाषा के विकास के लिए हमें अन्य भाषाओं से शब्दों को लेने में कोई हिचक नहीं दिखानी चाहिए, क्योकि विश्व को कोई ऐसी भाषा नहीं है, जिसमें दूसरी भाषाओं के शब्द न हों। श्री महावीर सिंह ने सोशल मीडिया पर भाषा के स्तर पर चिंता जताते हुए आयोग से कहा कि सोशल मीडिया पर जैसी भाषा का प्रयोग हो रहा है उस पर विशेष ध्यान दिये जाने की भी जरूरत है।
वहीं मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय, वर्धा के जनसंचार विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. रेणु सिंह ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से “सोशल मीडिया की भाषा” पर अपना सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज सोशल मीडिया का प्रयोग शहरी लोगों के साथ साथ ग्रामीण लोगों द्वारा भी किया जा रहा है।
फेसबुक जैसे सोशल मीडिया की आज भारत के लोगों के बीच लोकप्रियता बहुत बढ़ चुकी है, ऐसे में उपयोगकर्ताओं को लुभाने, मोटीवेट और सूचना पहुंचाने में भाषा का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। कोरोना काल में जागरूकता फैलाने में भी सोशल मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। उन्होने आगे कहा कि तकनीक ने हमेशा भाषा को प्रभावित किया है, वहीं माध्यम के अनुरूप ही भाषा में भी बदलाव होते रहते हैं। इतना ही नहीं संचार तकनीक के आने से कई नए तरह के शब्द भी विकसित हुए हैं और सोशल मीडिया पर ऐसे नए-नए शब्दों का प्रचलन बढ़ा है, जिसे हम ‘नियोलोगिज़्म’ के अंतर्गत समझ सकते हैं।
डॉ. रेणु सिंह ने सोशल मीडिया पर भाषा के तकनीकी पहलुओं को विस्तार से बताते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर भाषा को कहीं न कहीं हमें तकनीक के संदर्भ में देख कर समझना होगा, क्योंकि इस पर एक अलग तरह की भाषा गढ़ी जा रही है जिसमें व्याकरण कम और संचार के गुण ज्यादा है, इसलिए ऐसे शब्द बहुत जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं। लेकिन अन्य वक्ताओं की तरह उन्होने भी हिन्दी भाषा को और समृद्ध करने हेतु प्रयास किए जाने की जरूरत पर बल दिया ।
आज संगोष्ठी का पहला दिन था। आज के सत्र का संचालन चक्प्रम बिनोदिनी देवी ने की और स्वागत वक्तव्य आयोग के सहायक निदेशक शिव कुमार चौधरी ने दी। अंत में आयोग की मर्सी ललरोहलू ने सभी वक्ताओं को धन्यवाद दिया। इस अवसर पर देश भर के कई विश्वविद्यालयों से शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी इस ऑनलाइन वेब संगोष्ठी में शामिल थे।