सौम्या ज्योत्स्ना : रिया चक्रवर्ती के मीडिया ट्रायल के कई मतलब हो सकते हैं। मीडिया में एक दौर ऐसा भी हुआ करता था, जब स्क्रीन पर खबर के फ्लैश होते ही दूनिया में तहलका मच जाता था। इसके साथ ही मीडिया के अन्य अंगों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ करता था, मगर वर्तमान समय में मीडिया का जो चेहरा सामने आया है, उसने मीडिया के नज़रिए को ही लोगों के सामने धुंधला कर दिया है।
मीडिया हमेशा से ऐसा नहीं था। वह मीडिया ही था, जिसने 1999 में जेसिका लाल मर्डर केस में जेसिका की बहन सबरीना लाल का आखिर तक साथ दिया था। यह मीडिया की मसक्क ही थी, जिसके बल पर न्याय का झंडा बुलंद हुआ था। इसके साथ ही एक ओर आरुषि हत्याकांड केस का चेहरा भी आंखों के सामने घुम जाता है, जिसमें मीडिया का एक अलग ही तेवर देखने को मिला था। मीडिया की रिर्पोटिंग ने आरुषि के यादों को बद्तर बना दिया और अभी भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है।
वर्तमान समय के मीडिया ट्रायल और मीडिया एक्टिविज़्म की बात करें तो आज का मीडिया सत्ता से सवाल करने से ज़्यादा कॉन्सपिरेसी थ्योरी में रम गया है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण सुशांत सिंह राजपूत की मृ्त्यु में चर्चा में रहने वाला नाम रिया चक्रवर्ती है। अब हालत ऐसी हो गई है कि सुशांत के चेहरे के पहले रिया चक्रवर्ती का चेहरा सामने आ जाता है। मीडिया भी सभी मुद्दों से भटका हुआ है क्योंकि उसे लोगों का टेस्ट पता चल गया है। मीडिया के भयावह रिर्पोटिंग के कारण ही सुशांत की यादें कड़वी लगने लगती है।
कानून के अनुसार हर किसी को अपना पक्ष रखने की इज़ाज़त है और संविधान के अनुसार यह हर नागरिक का अधिकार भी है। साथ ही जब तक आरोप सिद्ध न हो जाए तब तक किसी को दोषी साबित करके उस पर मीडिया ट्रायल चलाया जाना सरासर गलत है। सुशांत केस में हर एक व्यक्ति ने अपना पक्ष रखा है। ऐसे में यह हक रिया को भी मिलना चाहिए तभी निष्पक्ष पत्रकारिता का मापदंड पूरा होगा। केवल खबरों को दिखाते रहने और टिआरपी बटोरते रहने को पत्रकारिता का नाम नहीं दिया जा सकता है।
आलम यह है कि मीडिया में दिखाई जाने वाली खबरों को लोग सच मान रहे हैं और लोगों ने रिया को दोषी भी मान लिया है। हालांकि कानून का फैसला आना अभी बाकि है मगर मीडिया द्वारा रिया दोषी हैं इसलिए लोगों ने भी अपनी सोचने समझने की शक्ति को साइड कर दिया है। अब रिया दोषी है और उसे सजा मिलनी चाहिए और यह मीडिया के ट्रायल का ही नतीज़ा है।
हर सोशल मीडिया पर रिया पर अनेकों मीम्स, जोक्स आदि शेयर हो रहे हैं। लोगों के साथ मीडिया को भी मज़ा आ रहा है क्योंकि सभी को बातें करने के लिए मुद्दा मिल गया है। यहां एक सवाल बिल्कुल लाज़िमी है कि क्या मीडिया ट्रायल के कारण ही रिया के साथ-साथ अनेक तबके की महिलाओं को आब्जेक्टिफाई किया जा रहा है? जिस तरह लड़कियों को लेकर पूरे सोशल मीडिया में ऑनलाइन हेट फैलाया जा रहा है, उससे समाज का एक ऐसा चेहरा सामने लाता है, जहां लड़कियों को निशाना बनाकर उनपर अश्लील और भद्दे कमेंट किए जा सकें। मीडिया ट्रायल के कारण ही लोगों की नज़रों के सामने गुड एंड बैड वूमेन की छवि गढ़ी जा रही है।
मीडिया का ऐसा चेहरा नई बात नहीं है। ऐसे अनेकों मामले हैं, जिसमें महिला द्वारा न्याय मांगने और जांच को सही दिशा देने की मांग पर मीडिया ने दोहरा रवैया अपनाया है क्योंकि पितृसत्तामक व्यवहार समाज के साथ-साथ मीडिया में भी विराजमान है। मेन स्ट्रिम मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हट चुका है क्योंकि उसे लोगों के सामने खबरों को नहीं बल्कि लोगों द्वारा बनाई जा रही बातों को ही तोड़-मरोड़ कर पेश करना है।
मीडिया के ऐसे व्यवहार के कारण लोगों ने अनेकों मुद्दों को भुला दिया है क्योंकि सभी की नज़र रिया के मीडिया ट्रायल और पल-पल की ब्रकिंग न्यूज़ पर है। मीडिया वही दिखा रहा है, जो लोग देखना चाह रहे हैं। मीडिया अब अपने दायित्वों से हट चुका है। असल बात यह है कि दोषी का चेहरा आने से पहले ही लोग इस केस में रुचि लेना बंद कर देंगे क्योंकि शायद तब तक लोगों के साथ-साथ मीडिया को भी एक नई ब्रकिंग न्यूज़ मिल जाएगी। बहरहाल सुशांत की जितनी भी यादें हैं, उसमें मीडिया ने सबसे ज़्यादा कब्ज़ा किया है। आने वाला समय मीडिया के अनेक चेहरे सामने लेकर आएगा मगर उम्मीद है कि शायद तब तक लोगों की आंखें चका-चौंध से ज़्यादा खबरों को प्राथमिकता देगी।