रचना प्रियदर्शिनीः ‘प्रेम’ अथवा ‘प्यार’ एक ऐसा शब्द है, जिसकी कोई एक निश्चित परिभाषा या कोई तय दायरा नहीं है. अलग-अलग लोगों के लिए इसके मायने अलग हैं. भारतीय विज्ञापन जगत में भी दशकों से प्यार के विभिन्न रूपों का चित्रण किया जाता रहा है. हाल ही में रिलीज हुए ‘भीमा ज्वेलरी’ का एड भी इस दिशा में एक बेहद खूबसूरत प्रयास है, जिसके टैगलाइन ‘pure as love’ के जरिये समाज को एक खूबसूरत संदेश देने की कोशिश की गयी है कि प्यार को कोई जेंडर नहीं होता.
दरअसल यह एड फिल्म LGBTQIA+ के प्रति उसके परिवार तथा समाज के नजरिये की बात करता है. हालांकि इस एड में कहीं, किसी तरह कोई डायलॉग नहीं है, लेकिन शब्दों के जरिये कुछ नहीं कह कर भी यह एड काफी कुछ कह जाता है. इस एड फिल्म में एक ट्रांसजेंडर वुमेन की जीवन यात्रा को दिखाया गया है कि कैसे वह एक पुरुष से महिला के रूप में परिवर्तित होती है और किस तरह उसका परिवार और समाज बिना किसी भेदभाव या अफसोस के उसके इस बदलाव का स्वागत करता है. यही बात इस एड को खास बनाता है.
हमारे समाज में आज भी ज्यादातर ट्रांसजेंडर्स अपनी वास्तविक पहचान के साथ केवल इसीलिए सामने नहीं आ पाते, क्योंकि उन्हें हर वक्त इस बात का भय होता है कि अगर वे ऐसा करेंगे, तो कहीं उनका परिवार और समाज उन्हें बहिष्कृत तो नहीं कर देगा. इसी वजह से वे न चाहते हुए भी अपनी वास्तविक पहचान छिपा कर घुट-घुट कर झूठी जिंदगी जीने के लिए मजबूर होते हैं.
‘परिवार’ है इंसान की सबसे बड़ी ताकत
किसी भी इंसान के जीवन में उसके परिवार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है. जिस इंसान का परिवार और समाज उसे बहिष्कृत कर दे, उसे जीने के लिए दुगुने हौसले और ताकत की जरूरत पड़ती है, जो कि अक्सर कई लोग अचीव नहीं कर पाते. बीच राह में भी उनके हौसले पस्त हो जाते हैं. ऐसे में परिवार और समाज को यह समझना चाहिए कि समलैंगिकता या होमोसेक्सुअलिटी कोई मानसिक या शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक मनोवैज्ञानिक अवस्था है, जिस पर किसी इंसान का वश नहीं होता. ऐसी स्थिति में उस इंसान का मजाक बनाने या उसे प्रताड़ित करने के बजाय उसे समझने और उसके बदलावों को अपनाने की जरूरत है, ताकि उसे भी उसके हिस्से का हक और खुशी मिल सके.
विज्ञापनों का गहरा प्रभाव पड़ता है समाज पर
हालांकि किसी भी विज्ञापन के निर्माण का प्राथमिक उद्देश्य संबंधित प्रोडक्ट की बिक्री को बढ़ाना होता है, लेकिन हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि विज्ञापन हमारी सामाजिक मानसिकता और विचारों को बदलने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. अक्सर ऐसे विज्ञापन एक संक्षिप्त कहानी के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनका जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है. यही वजह है कि कुछ एड फिल्में काफी मशहूर हो जाती हैं और लोग उन्हें वर्षों तक याद रखते हैं. ‘भीमा ज्वेलरी’ का यह एड भी बेहद मार्मिक और प्यारा है, जिसे हर किसी को देखना चाहिए.
उम्मीद है इसे देखने के बाद हमारे समाज की सोच कुछ तो बदलेगी और वे ट्रांसजेंडर्स समुदाय के प्रति थोड़े सेऔर संवेदनशील बनेंगे.