संदीप ठाकुर
नई दिल्ली। कहते हैं जाे इंसान बड़बाेला हाेता है वह गलतियां भी अधिक
करता है। इससे शायद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इंकार नहीं करना
चाहेंगे कि मौका कोई हो, वह बोलते बहुत हैं। इसी आधार पर देश के लोग
उन्हें कुशल वक्ता मानते हैं। लेकिन अधिक बाेलने के चक्कर में मोदी कई
बार तथ्यों और आंकड़ों को लेकर हास्यास्पद स्तर तक की गलतियां करते रहे
हैं। उनकी तथ्यात्मक गलतियाें से भरपूर भाषण के कई वीडियाेज यू ट्यूब पर
आसानी से देखे व सुने जा सकते हैं। इनदिनाें चुनावी माैसम चल रहा है और
चुनाव के दिनों में गलतियाें काे लेकर सतर्कता जरूरी है। इसलिए मोदी
भाषणाें के दाैरान टेलीप्रॉम्पटर का उपयोग करने लगे हैं।
भाजपा काेर ग्रूप के सूत्राें ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ऐसा करने
की दो वजहें हैं। एक, नोट्स सामने रखकर बोलना अब पुरानी स्टाइल है। यह सब
जानते हैं कि मोदी टेक्नोलाजी प्रेमी हैं और इसीलिए वह टेलीप्रॉम्पटर का
उपयोग कर रहे हैं। दूसरा, चुनाव के जारी सीजन में रोजाना ही मोदी के कई
कार्यक्रम होते हैं। हर भाषण काे सिलसिलेवार ढंग से याद रखना व्यवहारिक
नहीं है। इसलिए भी माेदी इस तरह की सुविधा का उपयोग कर रहे हैं। 28 मार्च
को माेदी ने मेरठ में विजय संकल्प रैली को संबोधित किया था और भाषण के
दाैरान उन्हाेंने टेलीप्रॉम्पटर का सहारा लिया था। भैषण के फाैरन बाद
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जवाबी हमला में
ट्वीट् करते हुए कहा था कि आज टेली-प्रॉम्प्टर ने यह पोल खोल दी कि सराब
और शराब का अंतर वह लोग नहीं जानते जो नफ़रत के नशे को बढ़ावा देते हैं।3
मार्च 2019. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना में थे। उन्होंने एनडीए की
संकल्प रैली को संबोधित किया था। इस रैली में भी प्रधानमंत्री ने
टेलिप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद वह बिहार के पूर्व
मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के निशाने पर आ गए थे।
मोदी जिस पद पर हैं,वहां भूलों से बचने के लिए टेलीप्रॉम्पटर के उपयोग पर
थोड़ा आश्चर्य तो हो सकता है लेकिन किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन
पार्टी के ही कुछ नेता यह भी कहते हैं कि संभव है, मोदी को इसका उपयोग
करने की इसलिए जरूरत महसूस होने लगी है कि बढ़ती उम्र की वजह से उन्हें
बातों में तारतम्य बिठाने में दिक्कत होने लगी हाे। मोदी जितना व्यस्त
रहते हैं, उसमें इस उम्र में ऐसा होना कोई आश्चर्यजनक भी नहीं है। यह बात
मोदी के करीबियों से लेकर सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज में भी कही जाती
है कि मोदी, जरूरत होने पर, 16 घंटे तक एक्टिव रहते हैं। और यही उनकी
मजबूती भी है। प्रधानमंत्री मोदी 68 वर्ष पार कर चुके हैं। संभव है,
उनमें भी आयु से संबंधित बदलाव शुरू हो रहे हों और यह कोई बीमारी नहीं
है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आनुवंशिकी विज्ञान की प्रोफेसर रही डॉ.
दीपिका कौल ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि इंसान में संवेदी तंत्र
छोटी-छोटी कोशिकाओं से बने हैं। सभी संवेदी अंगों से मस्तिष्क को जोड़ने
का काम ये संवेदी कोशिकाएं ही करती हैं। दूसरी कोशिकाओं की तरह इनकी भी
मृत्यु होती है और नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। 55-60 वर्षों की आयु के
बाद संवेदी कोशिकाओं का मरना तो तेजी से होता है लेकिन पुनर्निर्माण की
गति धीमी पड़ जाती है। इसी से याददाश्त और अन्य प्रतिक्रियाएं भी कमजोर
पड़ने लगती है। यह सामान्य प्रक्रिया है और यह कोई बीमारी नहीं है।
ब्रिटेन के जानेमाने मनोचिकित्सक डॉ. अशोक जैनर ने एक रिसर्च बताती है कि
लगातार तनाव का किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य, खासतौर से मानसिक
स्वास्थ्य, पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। इसमें सबसे पहले याद रखने की
शक्ति पर प्रभाव पड़ता है।
टेलिप्रॉम्प्टर क्या होता है? आपने न्यूज पढ़ते ऐंकर्स को देखा होगा, वे
सामने की तरफ देखते हुए धाराप्रवाह बोलते जाते है बिना किसी तथ्य की गलती
किए। सामान्यत: देखने पर ऐसा लगता है कि ऐंकर बिना देखे पढ़ रहा है। जबकि
ऐसा होता नहीं है। ऐंकर के सामने एक डिवाइस लगी होती है। जिसमें सारा
लिखा दिखता रहता है। इसी टेक्स्ट को पढ़ते हुए ऐंकर बोलता है। इस डिवाइस
को टेलिप्रॉम्प्टर कहते हैं। माेदी के सभाओं में पोडियम से 4 फीट की दूरी
पर दो पतली डंडियों पर पारदर्शी स्क्रीन लगा होता है जिसे दूर से न तो
दर्शक देख पाते हैं और न ही कैमरा। इसी स्क्रीन पर उनके सलाहकार भाषण के
मुख्य अंशों को उभारते रहते हैं जिन्हें पढ़कर वह अपने हर भाषण को पहले से
अलग बना देते हैं। मोदी पहले इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ अंग्रेजी में
भाषण देने के लिए करते थे। विदेश दौरों के समय ही नहीं, वैज्ञानिकों या
शिक्षाविदों के कार्यक्रमों के दौरान भी अंग्रेजी में बोलने के लिए मोदी
टेलीप्रॉम्पटर का इस्तेमाल करते रहे हैं। चूंकि यह लगभग पारदर्शी होता है
और नजरों और कैमरों की पकड़ में नहीं आता, इसलिए लोगों को लगता है कि वे
स्वतः स्फूर्त भाषण दे रहे हैं। मालूम हाे कि माेदी काे अंग्रेजी बोलने
में उतनी ही महारत हासिल है जितनी कुमार स्वामी या किसी अन्य दक्षिण
भारतीय नेताओं को हिंदी बोलने में रहती है।