नई दिल्ली : सरकार के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा कि ग्राहकों को सीधे दी जा रही रसोई गैस सब्सिडी से बचत केवल 1764 करोड़ रूपये की हुई है जो कि सरकार के दावों का सिर्फ 15 प्रतिशत है।
कैग ने संसद में पेश एक रपट में कहा है कि सब्सिडी मद में ज्यादातर बचत कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में भारी गिरावट के कारण हुई है। कैग के अनुसार, ‘अप्रैल 2015 से दिसंबर 2015 के दौरान सब्सिडी का वास्तविक भुगतान 12,084.24 करोड़ रूपये रहा जबकि अप्रैल 2014 से दिसंबर 2014 के दौरान यह राशि 35,400.46 करोड़ रूपये रही थी।’ रपट के अनुसार सब्सिडी भुगतान में 23,316.12 करोड़ रूपये की उल्लेखनीय कमी में से 21,552.8 करोड़ रूपये की कमी तो कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से आई।
वहीं इस दौरान, ‘उपभोक्ताओं द्वारा कम सिलेंडर लेने के कारण इस (सब्सिडी में) में 1763.93 करोड़ रूपये की कमी आई।’ महालेखा नियंत्रक ने सब्सिडी दर में कमी को सब्सिडी बचत में सबसे महत्वपूर्ण कारक बताया है। उल्लेखनीय है कि डीबीटी के तहत सब्सिडी का भुगतान सीधे उपयोक्ता के बैंक खाते में किया जा जाता है।
पेट्रोलियम मंत्रालय का दावा है कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना के कार्यान्वयन से फर्जी व नकली रसोई गैस कनेक्शन समाप्त होने के कारण 2014-15 में 14,818.4 करोड़ रूपये की बचत हुई। यह आंकड़ा 3.34 करोड़ अवरूद्ध (ब्लाक) किए गए ग्राहकों को 369.75 रूपये प्रति सिलेंडर औसत सब्सिडी के आधार पर निकाला गया है। उपभोक्ता हर साल 14.5 किलो के 12 गैस सिलेंडर सब्सिडी शुदा दर पर ले सकते हैं।
कैग का कहना है कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने फरवरी 2016 में एलपीजी सब्सिडी मद में 2015-16 में 9211 करोड़ रूपये की संभावित बचत का अनुमान लगाया था जबकि तेल विपणन कंपनियों के लिए यह अनुमान 5,107.48 करोड़ रूपये था। कैग ने अपनी रपट में सब्सिडी बचत में गणना के अलग-अलग तौर तरीकों को भी रेखांकित किया है।
कैग ने कहा है कि 6.27 सिलेंडर उठाव के राष्ट्रीय औसत (कंपनियों के आकलन में इस्तेमाल) के अनुसार 2015-16 के लिए सब्सिडी में अनुमानित बचत केवल 4813 करोड़ रूपये रहेगी। रसोई गैस के लिए तेल कंपनियों में समन्वय करने वाली इंडियन आयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने 2015-16 के लिए सब्सिडी बचत की गणना करते समय 2014-15 में औसत सब्सिडी दर 338 रूपये प्रति सिलेंडर मानी। कैग के अनुसार इसके कारण सब्सिडी में बचत ‘बढ़ा-चढाकर’ पेश की गई जबकि 2015-16 में एलपीजी कीमतों में भारी गिरावट आई।