न्यूयार्क : टीम इंडिया के वनडे कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर बनी फिल्म ‘एमएस धोनी-द अनटोल्ड स्टोरी’को लेकर खुद धोनी एक अलग सोच रखते हैं. धोनी चाहते हैं कि उनके जीवन पर बनी फिल्म में उनके अब तक सफर को दिखाया जाए ना कि उनका गुणगान नहीं किया जाए. धोनी ने फिल्म के निर्देशक नीरज पांडे को ‘एमएस धोनी-द अनटोल्ड स्टोरी’ के शुरूआती चरण के दौरान भी यही बात कही थी.
पत्नी साक्षी और निर्माता अरूण पांडे के साथ अपनी फिल्म का प्रचार करने अमेरिका आए धोनी ने अपने जीवन और एक छोटे शहर के प्रतिभावान लड़के से भारत के सबसे सम्मानित कप्तानों में से एक बनने के बदलाव पर बात की. यह फिल्म दुनियाभर में 30 सितंबर को रिलीज होगी.
धोनी ने यहां फिल्म के प्रचार कार्यक्रम के दौरान कहा कि एक चीज मैंने पांडे को कही कि इस फिल्म में मेरा गुणगान नहीं होना चाहिए. यह पेशेवर खिलाड़ी के सफर के बारे में है और इसे यही दिखाना चाहिए. असल जीवन में वर्तमान में जीने वाले धोनी के लिए यह मुश्किल था कि वह अपने जीवन में पीछे जाएं और फिल्म के लिए कहानी नीरज को सुनाएं.
धोनी से जब यह पूछा गया कि क्या वह चिंतित हैं कि फिल्म देखने के बाद एक व्यक्ति और क्रिकेटर के रूप में दुनिया उन्हें किस तरह देखेगी तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि शुरूआत में जब फिल्म की धारणा रखी गई तो मैं थोड़ा चिंतित था लेकिन एक बार काम शुरू होने के बाद मैं चिंतित नहीं था क्योंकि मैं सिर्फ अपनी कहानी बयां कर रहा था.
नी ने साथ ही अपने क्रिकेट जीवन के उन लम्हों को भी साझा किया जिनका उन पर बड़ा असर पड़ा. भारतीय कप्तान ने कहा कि 2007 विश्व कप में हार और उनके तथा टीम के खिलाफ प्रतिक्रिया का उन पर गहरा असर पड़ा और कुछ हद तक यह अनुभव उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा.
उन्होंने कहा कि जब टीम क्रिकेट मैच हारती है तो भारत में समझा जाता है कि वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने कोई अपराध किया है या वे हत्यारे या आतंकवादी हैं. उन्होंने 2007 विश्व कप के पहले दौर से बाहर होने के बुरे समय को भी याद किया जब लोगों ने उनके घर पर पत्थर बरसाए थे. धोनी ने स्वीकार कि उनकी कप्तानी उनकी दिल की आवाज अधिक है क्योंकि उन्होंने जीवन के अनुभव से काफी कुछ सीखा है.
यह पूछने पर कि क्या वह खुद अपनी भूमिका निभा सकते थे तो धोनी ने कहा कि अभिनय काफी मुश्किल काम है जिसे अभिनेताओं पर छोड़ देना चाहिए जिन्हें पता है कि क्या करना है. धोनी ने कहा कि खड़गपुर रेलवे स्टेशन में टीटीई के रूप में काम करने ने उन्हें कड़ा बनाया और वह बेहतर व्यक्ति बने.
आत्मकथा के बारे में पूछने पर धोनी ने कहा कि किताब लिखने में अधिक प्रयास लगते हैं और ऐसा करने में समय लगेगा. उन्होंने कहा कि किताब अपना समय लेगी. किताब लिखने की धारणा असल में फिल्म से पहले आई थी लेकिन इसके लिए अधिक प्रयास की जरूरत है. किताब अधिक विस्तृत होगी.
धोनी ने फिल्म के हिरो सुशांत सिंह राजपूत को ‘शानदार अभिनेता’ करार दिया जिन्होंने फिल्म के लिए कड़ी मेहनत की है और विभिन्न सेलीब्रिटीज क्रिकेट लीग में वह अब बेहतर क्रिकेटरों में से एक हैं. धोनी ने बताया कि सुशांत चाहते थे कि उन्हें क्रिकेट खेलते हुए धोनी की मानसिकता के बारे में पता चले.
उन्होंने कहा कि यह मुश्किल था क्योंकि काफी चीजें ऐसी थी जो मैं उसे नहीं बता सकता था क्योंकि मैं अब भी सक्रिय क्रिकेट खेल रहा हूं और कप्तानी कर रहा हूं. धोनी ने कहा कि पर्याप्त बुनियादी ढांचा और मार्गदर्शन के अलावा जज्बा भारत को ‘खेल राष्ट्र’ बना सकता है. धोनी ने कहा कि खेल में कम समय में नतीजे नहीं मिलते.
उन्होंने कहा कि एक ओलंपिक के बाद अगर हम खेल में निवेश करें और कहें कि अगले ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिलेगा तो खेल में ऐसा नहीं होता. यह ऐसे काम करता है कि आप बुनियादी ढांचा मुहैया कराएं, खान पान और स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा दें. उन्होंने कहा कि एक समय बाद जब सभी चीजें खिलाड़ियों को मिलेंगी तो देश खेल राष्ट्र के रूप में विकसित होगा. यह काफी अहम है.