नई दिल्ली : आमिर खान की 3 इडियट्स के मशहूर किरदार फुनसुख वांगडू उर्फ़ रैंचो का चरित्र जिस सोनम वांगचुक नाम के व्यक्ति से प्रेरित था उसे पर्यावरण की बेहतरी के लिए इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय रोलेक्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
बता दें कि फिल्म थ्री इडियट्स में रैंचो का स्कूल था जहां अनोखे प्रयोग किए जाते थे। इसमें आमिर खान के किरदार का असली नाम फुनसुख वांगड़ू था और आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि फुनसुख वांगड़ू का ये किरदार असल जिंदगी के एक टीचर से प्रभावित था जिनका नाम है सोनम वांगचुक। उसी सोनम वांगचुक के सबसे अनोखे आइस स्तूप को रोलेक्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। उन्हें लॉस एंजेल्स में 40वें रोलेक्स अवॉर्ड के दौरान सम्मान दिया गया।
पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर सोनम वांगचुक लद्दाख में कई सालों से पर्यावरण की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं। सोनम ने आइस स्तूप नाम की एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जिससे लद्दाख जैसे ठंडे रेगिस्तान में पानी की कमी को काफी हद तक कम कर दिया है। सोनम वांगचुक की इस अनोखी पहल को आज पूरी दुनिया सलाम कर रही है।
सोनम वांगचुक ने अपने द्वारा ईजाद की गई तकनीक को आइस स्तूप का नाम दिया है। दुनिया आज वांगचुक के इस अनोखे प्रयोग को देखकर हैरान है, क्योंकि उन्होंने लद्दाख जैसे सूखे इलाके में कृत्रिम ग्लेशियर बनाकर यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी बदल दी है।
उल्लेखनीय है कि लद्दाख जैसे सर्द-शुष्क रेगिस्तान में पानी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, लेकिन पर्यावरण में आ रहे बदलाव ने यहां पानी की गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। इससे निपटने के लिए सोनम ने बर्फ का स्तूप खड़ा कर दिया और इसी वजह से उन्हें पर्यावरण और पानी बचाने के लिए रोलेक्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
इस तकनीक में हम उस पानी को जमा देते हैं, जो जाड़े में यूं ही बर्बाद हो जाता है। पानी को पिरामिड के आकार में जमाने की वजह से ये आसानी से नहीं पिघलता। मई-जून के महीने में जब लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते हैं, तब ये पानी बहुत काम आता है।
इस अवॉर्ड की अहमियत आप इस तरह से समझ सकते हैं कि इस वर्ष पूरी दुनिया से सिर्फ 10 लोगों को ही रोलेक्स सम्मान दिया गया है। अवॉर्ड मिलने के बाद सोनम को दुनिया भर से बधाइयां मिल रही हैं। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए सभी लोगों का आभार जताया है।
यह अवॉर्ड स्विस घड़ियों के सबसे बड़े ब्रांड रोलेक्स कंपनी की तरफ से दिया जाता है। यह उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने अपनी सोच और करिश्मे से दुनिया को बदला है। 1976 से हर साल दिए जा रहे इस अवॉर्ड को पाने वाले वांगचुक दूसरे भारतीय हैं। इससे पहले झीलों को बचाने के लिए 2012 में अरुण कृष्णमूर्ति को ये सम्मान दिया गया था।
इस अवार्ड के अन्तर्गत सोनम को एक लाख स्विस फ्रैंक यानी करीब 67 लाख रुपए मिले हैं। इन पैसों को सोनम ने लद्दाख में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए दान करने का फैसला किया है।
यही सादगी सोनम वांगचुक को सबसे अलग करती है। वास्तव में सोनम लद्दाख की जमीन पर एक ऐसे बौद्ध भिक्षु की तरह हैं जो उनकी तरह कपड़े तो नहीं पहनते, लेकिन उनके जैसा ही सादा जीवन जीते हैं।