नई दिल्ली : कश्मीर में अलगाववादियों के फरमानों को धता बताते हुए शहर के कई इलाकों में लोग अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं. वहीं अलगववादियों की प्रायोजित हड़ताल ने 89वें दिन भी घाटी में जनजीवन को प्रभावित किया.लेकिन इन सब के बीच कश्मीरी बच्चों का भविष्य ख़राब हो रहा है. उनकी पढाई-लिखी बाधित हो ही रही है, उनके बीच हिंसा की भावना बढ़ रही है.
आठ जुलाई को दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन का कमांडर बुरहान वानी मारा गया था. जिसके बाद से ही शहर में अशांति का दौर चल रहा है. शहर के सिविल लाइंस इलाके में लोगों ने घरों से निकलना शुरू कर दिया है.
अलगाववादियों की हड़ताल के चलते घाटी में बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. ज्यादातर जगहों पर सरकारी संस्थान खुले हुए हैं और शिक्षक ड्यूटी पर मौजूद भी हैं. सरकारी दफ्तरों और बैंकों में भी हाजिरी में सुधार हुआ है.
अधिकारियों ने बताया कि समूची घाटी में कुछ दिन पहले कर्फ्यू हटा दिया था जिसके बाद कारोबारी केंद्र लाल चौक सहित श्रीनगर के बाहरी इलाकों में बसों को छोड़ निजी और सार्वजनिक वाहनो की आवाजाही में काफी बढ़ोतरी हुई है. कश्मीर में हर दिन के बीतने के साथ ही हालात में सुधार हो रहा है. उन्होंने बताया कि शहर के टीआरसी चौक-बटमालू के आसपास कई रेहड़ी-पटरी वालों ने अपने स्टॉल लगाए. कई स्थानों पर फल, सब्जी, ताजा जूस, चाय और स्नैक्स जैसा सामान बेचने के साथ रोजमर्रा के काम किए.
अधिकारियों ने बताया कि घाटी में कहीं भी लोगों की आवाजाही पर कोई पाबंदी नहीं है लेकिन लोग सुरक्षित महसूस करें इसके लिए बाजारों और कई स्थानों पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है. कश्मीर के कुछ इलाकों में और जिला मुख्यालयों और कस्बों में अलगाववादियों द्वारा प्रायोजित बंद के कारण 89वें दिन भी जनजीवन प्रभावित रहा. इन क्षेत्रों की ज्यादातर दुकानें बंद रहीं.
sअशांति का दौर शुरू होने के बाद से सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में दो पुलिसकर्मियों सहित 83 लोगों की मौतें हो चुकी हैं और करीब एक हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं.