नई दिल्ली : जेएनयू का मशहूर गंगा ढाबा के बंद होने की आशंका है. जेएनयू प्रशासन ने गंगा ढाबा को खाली करने का आदेश दिया है. कैंपस के छात्र इस फरमान के खिलाफ खड़े हो गये हैं. हालांकि कल गंगा ढाबा नहीं खुला था . अब यह खुलेगा भी या नहीं कहा नहीं जा सकता.
जेएनयू प्रशासन ने मशहूर गंगा ढाबा को बंद करने का फरमान सुनाया है. जिसके बाद छात्रों में नाराजगी है. छात्रों ने जेएनयू प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ नारेबाजी भी की है . अब छात्रों की नराजगी इसलिए है क्योंकि ये गंगा ढाबा कैंपस की पहचान बन चुका है. जेएनयू में राजनीति करने वाले छात्र मानते हैं कि ये ढाबा सिर्फ खाने का ही नहीं बल्कि जेएनयू के विचारों का एक केंद्र है.
गंगा ढाबा को कैंपस की नाइट लाइफ का अहम हिस्सा माना जाता है. आधी रात तक यहां छात्रों का मजमा लगता है. देसी-विदेशी मुद्दों पर चर्चा होती है. नेता चाय की चुस्कियों के साथ रणनीति बनाते हैं. रात को आपको कहीं खाना और चाय भले ही न मिले लेकिन इस जगह आपको चाय, पानी, खाना सब मिल जाएगा. कैंपस के पुराने छात्र मानते हैं कि गंगा ढाबा कैंपस की सुरक्षा के लिए भी काफी अहम है. अब इसे खाली कराने की वजह भी जान लीजिए.
1985 से चल रहा गंगा ढाबा पहले तेजबीर सिंह ने नाम पर अलॉट था. उनकी मौत के बाद पत्नी सुमन के नाम पर ट्रांसफर हुआ फिर उनके जाने के बाद बेटे भरत तोमर इसे चला रहे हैं. जेएनयू प्रशासन का कहना है कि जिनके नाम पर करार था अब वो नहीं हैं लिहाजा ढाबा गैरकानूनी तरीके से चल रहा है. इसलिए नए सिरे से अलॉट किया जाएगा. छात्रों को वैचारिक अड्डे की चिंता है तो यहां काम करने वाले लोगों की रोजी रोटी पर सवाल खड़ा हो रहा है.
तीन दशक से खड़ा गंगा ढाबा कैंपस में कई तरह के परिवर्तनों, आंदोलनों का गवाह रहा है. कितने लोग आए और गए लेकिन गंगा ढाबा अपनी पहचान के साथ बना रहा. अब इसे हटाने के पीछे जेएनयू प्रशासन की मंशा को लेकर सवाल उठ रहे हैं.