नई दिल्ली : देश में दालों की कमी की समस्या का हल खोजने की दिशा में वैज्ञानिकों को एक अहम सफलता मिली है. दाल की एक नई क़िस्म विकसित की गई है जो कम समय में पैदा होती है. नयी किस्म से दालों की परंपरागत खेती की शक्ल बदल सकती है. अरहर यानि तूअर दाल की इस नयी किस्म को नाम दिया गया है ‘पूसा अरहर 16’.
दाल की इस नयी किस्म को प्रयोग के तौर पर इस साल 15 जून को लगाया गया था. आज इसकी तैयार फसल की कटाई हुई. दाल की इस नयी किस्म की अहम ख़ासियत है कि ये 120 दिनों में ही फ़सल तैयार हो जाती है. जबकि दाल की परंपरागत क़िस्मों को पकने में 170 से 270 दिन लग जाते हैं.
अनुमान के मुताबिक़ एक एकड़ खेत में इस नयी क़िस्म से 6-8 क्विंटल अरहर दाल पैदा हो सकती है. एक और ख़ासियत ये है कि नयी फ़सल का पौधा छोटा होता है. जबकि फली सबसे ऊपर होती है. जिससे इसकी कटाई मशीनों से भी की जा सकती है.
सरकार का कहना है कि फसल की इस नयी किस्म के बीज 1 जनवरी 2017 से किसानों के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे. दाल की नयी पौध पूसा अरहर 16 की तैयार फसल का जायजा लेने के लिए वित्त मंत्री अरूण जेटली और कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र में मौजूद थे.
पिछले दो साल से सरकार देश में दाल के उत्पादन में कमी की समस्या से दो चार हुई है. उत्पादन में कमी के चलते अरहर दाल की क़ीमत एक समय 200 रूपये प्रति किलो तक पहुंच गई थी. अरहर दाल, चने के बाद देश की दूसरी महत्वपूर्ण दलहन फ़सल है. देश में कुल उत्पादित दालों में 15 फीसदी हिस्सा इसी दाल का है.