लखनउ : उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) को लोकतंत्र मजबूत करने का सशक्त औजार करार देते हुए आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों पर चिन्ता जाहिर की. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं बेचैनी पैदा करने वाली हैं तथा इन्हें गम्भीरता से लेते हुए मुस्तैदी से रोका जाना चाहिये.
उपराष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के नये भवन का उद्घाटन करने के बाद अपने सम्बोधन में कहा कि आरटीआई का मकसद सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा किये जाने वाले कार्यो में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक नागरिक को अधिकार देना है. इस तरह यह लोकतंत्र को मजबूत करने का सशक्त औजार है लेकिन इसके बेहतर क्रियान्वयन में कुछ अड़चनें भी हैं.
उन्होंने कहा कि इन बाधाओं में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आरटीआई को लेकर पर्याप्त जागरूकता का ना होना, सूचना के प्रबन्धन और प्रसार का समुचित तंत्र मौजूद ना होना, गोपनीयता को बढ़ावा देने वाली नौकरशाही सोच और सूचना मांगने वालों को धमकी तथा खतरे शामिल हैं.
अंसारी ने कहा कि आरटीआई के तहत सूचना मांगने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहन और सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये. हाल में, सूचना मांगने वालों पर हमले तथा उनके साथ मारपीट किये जाने की खबरें आयी हैं. यह बेचैन करने वाली बातें हैं. इन्हें गम्भीरता से लेने और रोके जाने की जरूरत है. अगर ऐसे मामलों की संख्या कम भी हो, तो भी यह सूचना मांगने वालों की कमजोर स्थिति को दर्शाता है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि साल 2014-15 में निरस्त किये गये आरटीआई आवेदनों का प्रतिशत कुल का 8.40 प्रतिशत रहा है जो पूर्ववर्ती वर्ष की तुलना में ज्यादा है. यह चिन्ता का विषय है और इसकी जांच की जानी चाहिये.
हामिद अंसारी ने कहा कि इसमें जरा भी शक नहीं है कि आरटीआई कानून देश की आजादी के बाद पारित किये गये सबसे सशक्त और प्रगतिशील अधिनियमों में से है, लेकिन इसकी परिवर्तनकारी शक्ति का पूरा उपयोग होना अभी बाकी है. नागरिकों, सरकार, मीडिया तथा नागरिक समाज को अभी बहुत सारी बाधाएं दूर करनी होंगी. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आरटीआई के बेहद कम प्रयोग पर चिंता जाहिर करते हुए ‘कामनवेल्थ हयूमन राइट्स इनीशियेटिव’ की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि केन्द्रीय तथा राज्यों के सूचना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012-13 तक कुल आरटीआई आवेदनों में ग्रामीण क्षेत्रों की हिस्सेदारी केवल 14 प्रतिशत ही थी. यह ग्रामीण क्षेत्रों में आरटीआई के प्रति कम जागरूकता की निशानी है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आरटीआई के समुचित क्रियान्वयन के लिये हमें सरकारी प्रक्रियाओं और लेन-देन की गोपनीयता के सम्बन्ध में पुरानी मानसिकता छोड़नी होगी. इसके अलावा आरटीआई के बारे में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये केन्द्र तथा राज्यों दोनों के ही स्तर पर जनजागरूकता अभियान चलाये जाने, नागरिकों की भागीदारी प्रोत्साहित किये जाने तथा सरकार के भीतर पारदर्शिता बढ़ाये जाने की जरूरत है. साथ ही अधिकारियों को अपने पास उपलब्ध सूचनाओं को अपनी मर्जी से जनता के सामने रखना चाहिये.
उन्होंने कहा कि जहां तक उनकी जानकारी है तो उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हर महीने औसतन तीन हजार नयी अपील और शिकायतें दायर की जाती हैं. इस बड़े राज्य के लिये भी यह आंकड़ा बड़ा है और सम्भवत: यह सूचनाओं के स्वैच्छिक प्रकटीकरण की गुणवत्ता में सुधार लाये जाने की जरूरत को भी दर्शाता है. इस दौरान राज्यपाल राम नाईक तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी मौजूद थे.