गांधीनगर : गुजरात भूमि अधिग्रहण विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। इस विधेयक में तत्कालीन संप्रग सरकार की ओर से लाये गए संबंधित कानून में ‘सार्वजनिक उद्देश्यों’ और ‘औद्योगिक कोरीडोर’ के लिए भूमि अधिग्रहण करने के वास्ते किये गए सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति के प्रमुख प्रावधानों को हटाया गया है।
कानून को स्वतंत्रता दिवस के दिन राज्य में लागू किया जाएगा। इसकी घोषणा आज यहां की गई। विधेयक का कांग्रेस की ओर से कड़ा विरोध किया गया था। कांग्रेस ने इसे ‘किसान विरोधी और उद्योगपति समर्थक’ करार दिया जिसमें सार्वजनिक उद्देश्यों, औद्योगिक कोरीडोर और सार्वजनिक निजी साझेदारी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करने के वास्ते प्रभाव आकलन और सहमति के प्रमुख प्रावधानों को हटाया गया है।
गुजरात के राजस्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह चूडासामा ने आज यहां संवाददाताओं से कहा कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और स्थान परिवर्तन (गुजरात संशोधन) विधेयक 2016 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार’ को आठ अगस्त को अपनी सहमति दे दी।’ उन्होंने कहा, ‘हम राज्य में नये कानून को 15 अगस्त से लागू करेंगे जिस दिन स्वतंत्रता दिवस है।’ राज्य सरकार इसे 15 अगस्त से पहले कानून के रूप में अधिसूचित कर देगी।
उन्होंने कहा कि 2013 के संप्रग के भूमि कानून में कई विसंगतियां थीं। हमारा यह नया संशोधित कानून उन विसंगतियों को हटाएगा और इससे राज्य में तेजी से विकास सुगम होगा।’ संशोधित विधेयक को इस वर्ष 31 मार्च को राज्य विधानसभा ने पारित किया था। उसके बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में संशोधन लायी थी। राजग सरकार की ओर से लाये गए सभी संशोधन गुजरात विधानसभा की ओर से पारित विधेयक का हिस्सा थे।
राजग का विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो सका क्योंकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास उपरी सदन में संख्या बल की कमी थी। मोदी सरकार ने उसके बाद विधेयक को राज्यसभा में पारित कराने का विचार छोड़ दिया और राज्यों से कहा कि वे अपनी सुविधा के अनुरूप कानून में संशोधन कर लें।
विधेयक के महत्वपूर्ण प्रावधानों में रक्षा और सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं जैसे वायु ठिकाना, रक्षा उत्पाद इकाइयां, स्कूल, सड़क, नहर और सस्ते आवास आदि निर्माण के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) को समाप्त करना शामिल है। अन्य महत्वपूर्ण संशोधन यह है कि औद्योगिक कोरीडोर और पीपीपी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में सरकार एसआईए नहीं कराएगी।
एक अन्य महत्वपूर्ण संशोधन प्रभावित पक्षों की सहमति के प्रावधान को खत्म करना है। मूल केंद्रीय कानून के मुताबिक जमीन अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति आवश्यक है। नये विधेयक के मुताबिक यदि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जमीन के अधिग्रहण की जरूरत है तो इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जाएगा। बहरहाल औद्योगिक विकास से संबंधित अधिग्रहण के लिए यह बरकरार रहेगा।