नई दिल्ली : देश भर में कल जन्माष्टमी का त्योहार पूरे धूम-धाम से मनाया जाएगा. मुंबई में इस मौके पर दही हांडी उत्सव की धूम रहती है. लेकिन इस बार दही हांडी से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण ‘गोविंदा’ नाराज हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 18 साल से कम उम्र वाले गोविंदा नहीं बन सकते और मानव पिरामिड की ऊंचाई की सीमा तय होना. इस फैसले से गोविंदा इस बार ग़ुस्से में हैं और दुखी भी हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इस त्यौहार के दौरान बनाये जानेवाले मानव पिरैमिडों पर बॉम्बे हाई कोर्ट की और से जो बंदिशें लगाई गई थी उनपर मोहर लगा दी गई है. बावजूद इसके गोविंदा, राजनीतिक पार्टियां और कुछ आयोजक इस बार अदालती आदेश की अनदेखी कर हर बार की तरह उत्सव मनाने के लिए जिद्द पर अड़े हुए है और इसके लिए वे जेल जाने तक को तैयार है.
इस मामले पर एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे ने कहा कि हिंदू धर्म के त्योहारों पर ही पाबंदियां क्यूं. दही हंडी हमारा पारंपरिक त्योहार है. उसको मनाने के लिए अब क्या कोर्ट से इजाज़त लेनी होगी. दही हंडी उत्सव में अगर कोई ग़लत प्रयोग या काम किया जा रहा होगा तो उसपर पाबंदी लगनी ही चाहिए. लेकिन अगर ये त्योहार पारंपरिक रुप से मनाया जा रहा तो उसमें बाधा क्यूं ?. इस साल पारंपरिक तरीके से ये उत्सव मनाया जायेगा.
दरअसल देश की आर्थिक राजधानी मुंबई जितनी अपनी तेज़ रफ़्तार के लिए जानी जाती है उतनी ही अपने त्याहारों के लिए मशहूर है. गणेशउत्सव, जन्माष्टमीं जैसे त्यौहार मुम्बईवासियों को उनकी गंभीर, तनावपूर्ण और संघर्ष से भरी ज़िंदगी को रिचार्ज करते हैं. यानी कुछ पल के लिए उन्हें तरो ताज़ी करते है. पारंपरिक रूप से मनाया जानेवाला ये त्यौहार साल दरसाल प्रसिद्ध होता गया और इस त्यौहार ने एक तरह से एडवेंचर स्पोर्ट्स का रूप ले लिया जिसमें पैसा, प्रसिद्धि और जोखिम भी है. इसी के चलते पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस उत्सव में शामिल होनेवाले नाबालिक गोविंदा और इंसानी मिनारे की उचाई पर पाबन्दी लगा दी. इन पबदनियों की वजह से पिछले दो साल से इस उत्सव का रंग फिंका पड़ गया है. लेकिन इस बार इन पाबंदियों से नाराज़ गोविंदा बगावत की भाषा कर रहे है और राजेनता राजनीती.
राजनीतिक पार्टियां ने तो खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उलंघन करके इस साल त्यौहार मानाने की घोषणा तक कर दी है. ठाणे में एमएनएस ने अपनी हांड़ी का नाम दिया है कानूनभंग दही हांड़ी. मुम्बई के सबसे मशहूर और बड़े गोविंद मंडल जय जवान ने साल 2012 में ठाणे में 34 फुट के 9 मानवी पिरामिड बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था. जय जवान और मुंबई के तमाम गोविंद मंडल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराश है. उनका कहना है कि उनका पक्ष जाने बगैर ये पाबंदियां उनपर लागू की गई है, जिसके लिए वो राज्य सरकार को भी जिम्मेदार मानते है.
गोविंदाओं का कहना है की हर खेल की तरह इस खेल में भी वे पूरी प्रैक्टिस के साथ उतरते है और हर खेल की तरह इस खेल में भी जोखिम है. तो फिर सिर्फ उनपर पाबन्दी क्यूं. गोविन्द मंडल चाहते है कि पाबंदियों के बजाए अदालत कोड ऑफ़ कंडक्ट या एक कमिटी बनाये जो ये प्रमाण दे सके की कौन से मंडल कितने मानवी पिरामिड बनाने की क्षमता रखते है और उन्हें उसकी इजाज़त दी जाये.
रिकॉर्ड और पैसे कमाने की होड़ में छोटे बच्चों को इस खेल में शामिल कर उनकी जान जोखिम डाली जाती है. लेकिन कुछ लगो ऐसे भी है जो अपने बच्चों को पैसों के लिए नहीं बल्कि अपनी परंपरा और इसे खेल समझते हुए इसमें शामिल करते है.
सुप्रीम कोर्ट और महाराष्ट्र सरकार के रवैये से नाखुश होकर गोविंदा उत्सव समन्वय समिति के सदस्यों ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की और उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई. लेकिन सरकार की तरफ से ज़्यादा मदद नहीं मिलने पर मुंबई के गोविंद अपने तरीके से त्यौहार मनाने की बात कर रहे है.
इस राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद मुंबई के लगभग सभी गोविंद मंडल इस साल सुप्रीम कोर्ट के अद्देश को चुनौती देने देकर त्यौहार मानाने की बात कर रहे है. कानून के जानकारों के मुताबिक ऐसा करने पर कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट की कार्रवाई के अलावा इन गोविंद का मंडलों का रजिस्ट्रेशन भी खतरे में आ सकता है.
दरअसल राजनितिक पार्टियां इस त्यौहार पर पूरी तरह से हावी हो चुकी थी. लाखों की इनामी राशि, बॉलीवुड का तड़का लगाकर युवाओं को इस खेल से आकर्षित तो किया लेकिन साथ ही इस त्यौहार के जरिये अपनी राजैनतिक रोटी भी सेंकी.
एमएनएस, शिव सेना जैसे पार्टियों के बढ़ावे ने गोविंदाओं के बगावत के सुर और बुलंद कर दिए है. अब गुरुवार को होनेवाले इस त्यौहार के दौरान ही पता चलेगा की कौन से गोविंदा मंडल और आयोजक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उलंघन करते और, कौन आदेशों का पालन. वहीं देखना होगा कि आदेश का उलंघन करनेवालों पर क्या कार्रवाई की जाती है.