फीचर डेस्क : हिंदी सिनेमा में अभिनेत्री आशा पारेख की एक अलग पहचान है। गुजरात के सुधा और बच्चूभाई के घर जन्मी आशा की खूबसूरती ने हिंदी सिनेमा में सबको अपना दीवाना बना दिया। उनकी माँ ने उन्हें कम उम्र में भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में दाखिला दिलाया था। आशा हिंदी सिनेमा में काफी बड़ा नाम है।
फिल्म मां से आशा पारेख ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा। हालांकि शुरुआत बतौर बाल कलाकार के रूप में थी। फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने पहली बार उन्हें स्टेज समारोह में नृत्य करते देखा और उन्हें वर्ष 1952 में महज दस साल की उम्र में फिल्म मां में लिया और फिर वर्ष 1954 में फिल्म बाप-बेटी में अभिनय करने का मौका दिया।
हालांकि इस फिल्म में उन्हें सफलता नहीं मिली। लेकिन, सोलह साल की उम्र में फिर उन्हें अभिनय करने का मौका मिला और इस बार वह नायिका के रूप में अभिनय करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें इस फिल्म में काम नहीं मिला। क्योंकि फिल्म निर्माता विजय भट्ट ने कहा कि वह प्रसिद्ध अभिनेत्री बनने के काबिल नहीं है।
वहीं फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें नायिका के रूप में फिल्म दिल देके देखो में काम करने का मौका दिया। इसी फिल्म ने उन्हें एक बड़ा सितारा बना दिया।
बता दें कि आशा पारेख भारतीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। जब प्यार किसी से होता है, घराना, भरोसा, मेरे सनम, तीसरी मंजिल, दो बदन, उपकार, शिकार, साजन, आन मिलो सजना उनकी प्रमुख फिल्में हैं।
फिल्म कटी पतंग के लिए आशा को बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड भी मिला था। हिंदी सिनेमा एक बड़ा नाम होने के बाद भी आशा ने कभी शादी नहीं की थी, लेकिन फिल्मी दुनिया में निर्देशक नासिर हुसैन के साथ अफेयर की चर्चाएं खूब हुईं।
हालांकि नासिर हुसैन से शादी नहीं हो पाने की बात पर आशा पारेख ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो नहीं चाहती थीं कि नासिर हुसैन कभी भी अपने परिवार से अलग हों और इसलिए उन्होंने शादी नहीं कीं।
हिंदी सिनेमा में आशा पारेख की छवि बहुत अच्छी मानी जाती है। आशा पारेख प्रेम में असफल रहने के बाद अकेली रहीं और उन्होंने कभी शादी नहीं कीं। उन्होंने फिल्मों से खूब नाम कमाया। फिल्मों में योगदान के लिए फिल्मफेयर का ही लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड 2002 में मिला। वहीं आशा पारेख 1992 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं।