राजपथ के लिए मो. तौहिद आलम की रिर्पोट : ‘विकास कार्यों की समीक्षा यात्रा’ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी 38 जिलों में बारी-बारी से समीक्षा कर रहे हैं। पिछले साल भी मुख्यमंत्री ने समीक्षा यात्रा की थी। इन सब में कॉमन बात यहीं देखने को मिला कि जहां—जहां मुख्यमंत्री का कार्यक्रम होता है वहां, जिलाधिकारी से लेकर नेता, सांसद, विधायक और कार्यकर्ता महीने भर पहले से सभी समस्याओं को सुलझाने में लग जाते हैं।
आने से पहले तक लगभग सभी समस्याओं को दूर भी कर लिया जाता है। लेकिन जाते ही सभी समस्याएं जस की तस रह जाती है। लोग महीनों से आस लगाए रहते हैं कि हमारे सरकार आएंगे तो हमारे गांव का विकास होगा। सड़क पक्की बन जाएगी, शुद्ध पानी मिलने लगेगा। जिस दिन जिस प्रखंड में सीएम का आगमन होता है वह दिन वहां के लोगों के लिए ईद, दीपावली से बढ़कर होता है।
यह सिलसिला हर साल का है। लेकिन मुख्यमंत्री के समीक्षा करके चले जाने के बाद भी स्थिति जस की तस रह जाती है। पेपर में एक दिन का फुल पेज कवरेज होता है। लोगों की उम्मीदें धरी की धरी रह जाती है। ना इस समीक्षा यात्रा से पहले कुछ हो पाता है और ना ही उसके बाद।
क्या सभी समस्याओं का समाधान शराब नहीं पीने में है
नाम विकास कार्यों की समीक्षा यात्रा, लेकिन हर जिले में लोगों से बस यहीं कहा जाता है अगर कोई शराब का सेवन करे तो सूचना दें। क्या सभी समस्याओं का समाधान शराब नहीं पीने में ही है! पिछले साल भी विकास कार्यों की समीक्षा हुई थी, क्या मुख्यमंत्री ने कभी खुद की समीक्षा की कि तब में और अब में क्या बदलाव हुआ?
खगड़िया के खटहा में नल से एक बूंद पानी नहीं टपका
इस साल खगड़िया के खटहा गांव में मुख्यमंत्री ने समीक्षा भी कर ली लेकिन नल से एक बूंद पानी नहीं टपका। परबत्ता में विधायक दावा करते रहे 24 घंटे बिजली मिल रही है, जिसके बाद लोगों ने हूटिंग शुरू कर दी। उसके बाद खुद मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी पड़ी कि अभी 8 घंटे बिजली मिल रही है। जल्द ही 18 घंटे मिलेगी। पता नहीं वहां कि वर्तमान स्थिति क्या है ?
मुंगेर में समीक्षा यात्रा के बाद भी नाले के पानी से साफ हो रहा बर्तन
मुंगेर में दिसंबर में ही समीक्षा यात्रा खत्म हो गया। लेकिन दैनिक भास्कर के 19 जनवरी के मुंगेर संस्करण में छपी एक तस्वीर कुछ अलग बयान कर रही है। शहर के बीचों-बीच स्थित वार्ड-20 में एक लड़की नाले के पानी से बर्तन साफ कर रही है, बगल में सुअर उसी पानी में विचर रहा है। ऐसी समीक्षा यात्रा का क्या मकसद?
मधेपुरा से जाते ही टोटियों से पानी गिरना बंद हो गया था
पिछले साल जब मुख्यमंत्री मधेपुरा से लौटे तो वहां के कई प्रखंडों में नल के टोटियों से पानी गिरना बंद हो गया था। इस साल भी मधेपुरा के गौरीपुर गांव के लोग उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने वहां महज 13 मिनट में समीक्षा कर ली। इस बार मुख्यमंत्री की चौपाल भी नहीं लगी। उसी गांव के वार्ड-9 में उसी दिन एक वृद्धा की लाश पड़ी थी, सीएम के जाने के बाद उसका दाह संस्कार हुआ।
अब भी 13 जिले के लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को विवश
अब भी बिहार के 38 में 13 जिलों के लोग आर्सेनिक युक्त पानी विवश को विवश हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि विकास कार्यों की समीक्षा में यात्रा में पानी की तरह पैसा बहाकर क्या मतलब जब लोगों को शुद्ध पानी ही न मिले?