नई दिल्ली : न्यायाधीशों के पदों पर नियुक्ति में विलंब के लिए सरकार को आड़े हाथों लेते हुए राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने दावा किया कि यह विलंब राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद हो रहा है। सत्ता पक्ष ने उनके इस दावे को गलत बताया।
उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान शर्मा ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि पूरे देश की विभिन्न अदालतों में पांच करोड़ से अधिक दीवानी एवं फौजदारी मामले लंबित हैं। कई गरीब लोग जेल में बंद हैं और उनकी यह अवधि उस अपराध की सजा से भी अधिक हो रही है जिस अपराध के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है और वे लड़ रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर नियुक्तियां न होने की वजह से यह समस्या और अधिक बढ़ रही है। शर्मा ने कहा कि देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के करीब 470 पद रिक्त हैं और यह गंभीर मुद्दा है। उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में कोलेजियम, प्रधान न्यायाधीश ने सरकार को सिफारिशें भेजी हैं लेकिन एनजेएसी संबंधी फैसले के बाद ऐसा लगता है कि सरकार बहुत गुस्से में और उच्चतम न्यायालय की कोलेजियम के साथ टकराव की राह पर है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि सरकार की कोशिश नियुक्तियों को रोकने की और ऐसी स्थिति लाने की है जिसमें उच्चतम न्यायालय की कोलेजियम द्वारा प्रस्तावित ‘नियुक्ति प्रक्रिया नियमावली (एमओपी) की गंभीरता को इस हद तक कम करने की है ताकि एक खास विचारधारा से जुड़े, खास झुकाव रखने वाले लोगों को इसमें शामिल किया जा सके।
शर्मा ने कहा कि स्थिति इतनी गंभीर है कि देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर कुछ दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति रो पड़े थे। समय बीत गया लेकिन प्रधानमंत्री का रवैया यथावत है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने या उनकी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। उनकी सरकार को इस मुद्दे का हल निकालना होगा और बताना होगा कि उसने उन नामों को क्यों रोक रखा है जिनकी सिफारिश उच्च न्यायालय और कोलेजियम ने की थी और इन रिक्त पदों को कब भरा जा सकेगा ताकि गरीब लोगों को न्याय मिल सके।
इसपर पूर्व कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि आनंद शर्मा ने जो कहा है वह सत्य से परे है। एनजेएसी संबंधी फैसले के बाद सरकार ने खुद प्रधान न्यायमूर्ति से संपर्क किया था। मैं उनके पास गया था। मैंने उनसे कहा था कि नए एमओपी को अंतिम रूप देने में समय लगेगा। हमने कहा कि देश भर में कई मामले लंबित हैं। हमने कहा कि नियुक्तियों को पूर्व में एमओपी के अनुसार आगे बढ़ाया जा सकता है।