अधिकांश घरों में महिलाओं द्वारा ही रसोइघर के काम किए जाते हैं, जिस कारण महिलाएं अनेक कामों में भी अपनी रुचि रखती हैं क्योंकि रसोइघर में काम करते वक्त सब्जियों के छिलके आदि निकलते हैं, जिससे अधिकांश महिलाएं मिट्टी में डालकर उससे खाद का निर्माण करती हैं। इससे एक संस्कार की शुरुआत है और बच्चों के अंदर भी पेड़-पौधों से लगाव शुरु हो जाता है। इसके साथ ही जिन पौधों के आध्यात्मिक महत्व होते हैं, उन्हें महिलाएं निश्चित तौर पर लगाती हैं और उसकी देखभाल भी करती हैं।
हम सब बचपन से देखते आ रहे हैं कि हमारे घरों में तुलसी का पौधा ज़रूर लगा होता है, जिसकी पूजा घर की महिलाएं किया करती हैं।
सुबह शाम जाकर उस में जल चढ़ाना और दीया जलाना यह काम घर की महिलाओं का ही होता है। इस रिवाज का मतलब यह हुआ कि पुराने समय से ही महिलाएं पेड़ पौधों से सबसे ज्यादा जुड़ी हैं और वे प्रकृति को बचाने अर्थात प्रकृति के संरक्षण का कार्य करती हैं।
साथ ही ऐसे अनेक पर्व-त्यौहार भी हैं, जिसमें महिलाओं द्वारा पेड़ों को पूजा जाता है। जैसे- बिहार में मनाया जाने वाला वट सावित्री का त्यौहार। जिसमें महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी आयु का वरदान मांगती हैं। इसके साथ ही महिलाओं द्वारा पीपल समेत केले के पेड़ की भी पूजा की जाती है।
जब हम पेड़ पौधों को बचाने का इतिहास पढ़ते हैं, वहां भी हम यह देखते हैं कि पृथ्वी तथा प्रकृति को बचाने के आंदोलनों में महिलाओं की सबसे ज्यादा भूमिका रही है। जैसे- चिपकू आंदोलन, जिसमें महिलाएं पेड़ों से लिपट कर उन्हें कटने से बचाती हैं। चिपकू आंदोलन वृक्षों की महत्ता से वाकिफ करवाने वाला एक बहुत बड़ा आंदोलन है। यह एक ऐसा आंदोलन है, जिसमें केहरी समूह के पेड़ों को बचाने के लिए अमृता देवी के नेतृत्व में 84 गांवों के 383 लोगों ने अपनी जान दे दी थी। जब इसके बुरे प्रभावों का एहसास हुआ तो जोधपुर के महाराज के आदेश पर शुरू हुई पेड़ों की कटाई को रोक दिया गया। साथ ही एक राजकीय आदेश जारी कर पेड़ों के काटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। आधुनिक भारत में, 1973 में उत्तर प्रदेश के मंडल गांव में यह आंदोलन दोबारा शुरू हुआ था।
प्रकृति के संरक्षण का कार्य महिलाओं की ही जिम्मेदारी रही है क्योंकि प्रकृति को संवारने की ओर संरक्षित करने के लिए में महिलाओं का अथक प्रयास शामिल है। वह प्रयास आज भी जारी है क्योंकि महिलाएं ही घर के आंगन में लगे पौधों को सींचने का काम करती हैं।
घर के छोटे बच्चे जब अपनी मांओं को पौधों में जल देते या उन्हें सुरक्षा देते हुए देखते हैं, तब उनके मन में भी पौधों को संरक्षित करने का संस्कार जन्म लेता है। जैसे की हम सब जानते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण अनेकों परेशानी होती है ऐसे में अगर बच्चे घर में महिलाओं को पौधों को संरक्षित करते हुए देखे तक उनके मन में भी प्रकृति से जुड़ाव उत्पन्न होगा। इसलिए महिलाएं प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ बच्चों में भी पौधों को संरक्षित करने के संस्कार को उत्पन्न करती है।