नई दिल्ली : श्रीनगर से 100 किलोमीटर दूर जम्मू कश्मीर के उरी में सेना के ब्रिगेड के हेडक्वार्टर पर हुए आतंकवादी हमले 17 जवान शहीद हो गए. उन 17 जवानों में 15 जवान बिहार रेजीमेंट के थे. आज हम आपको बताते हैं कि बिहार रेजीमेंट की गौरवशाली गाथा, जिसने हर समय जीत का परचम लहराया है. इस रेजिमेंट के जवानों की वीरता और शहादत के सामने हर देशवासी का सर झुक जाता है.
‘जय बजरंग बली’ का युद्धघोष करना और दुश्मनों पर टूट पड़ना, यही है बिहार रेजीमेंट की पहचान. 1941 में बनने के बाद से बिहार रेजीमेंट ने वीरता का अनंत कथाएं लिखीं. देश को जब-जब दुश्मन से लड़ने की जरूरत पड़ी तब-तब बिहार रेजीमेंट के योद्धा अपने रेजीमेंट की आन बान और शान के मुताबिक देश के काम आए.
बिहार की राजधानी की पटना के पास दानापुर में बिहार रेजीमेंट का मुख्यालय है. दानापुर के आर्मी कैंटोनमेंट को देश को दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट होने का गर्व हासिल है.
बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं ने दूसरे विश्व युद्ध की लड़ाई लड़ी. 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए पाकिस्तान से टकराए. करगिल युद्ध से लेकर पाकिस्तान को सबक सिखाया. कभी जान की परवाह नहीं की. सिर्फ देश की शान के लिए सोचा.
करगिल युद्ध में भारत विजय की कहानी लिखने में बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं का बड़ा योगदान रहा है. 6 जुलाई 1999 को बटालिक सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने प्वॉन्ट 4268 और जुबर रिज पर कब्जा करने की कोशिश की थी लेकिन पाकिस्तान की जीत 24 घंटे भी टिकी नहीं टिक पाई. 9 जुलाई को ही बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं ने पाकिस्तानियों को खदेड़कर जीत का परचम लहराया था.
करगिल युद्ध में वीरता के लिए कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को मरणोपरांत महावीर चक्र से, मेजर मरियप्पन सरावनन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 2008 में जब मुंबई में हमला हुआ था तब एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ऑपरेशन ब्लैक टोरनांडो में शहीद हुए थे. मेजर संदीप बिहार रेजीमेंट के ही थे और डेप्यूटेशन पर एनएसजी में गए थे. पटना के गांधी मैदान में करगिल चौक ऐसे 18 शहीदों की शहादत को याद रखने के लिए बनाया गया है जो बिहार के थे औऱ करगिल युद्ध में शहीद हुए थे.