अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े का क्या असर हो सकता है?
-अदिति शुक्ला
अफ़ग़ानिस्तान की सरकार और बाकी देशों को यह अंदाज़ा नहीं था कि काबुल पर तालिबान का इतनी तेज़ी से कब्ज़ा हो सकता है।
एक दिन पहले ही अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अपने देश वासियो को वीडियो संदेश से संबोधित कर रहे थे और अगले ही दिन वह देश छोड़ कर चले गए। और दूसरी ही तरफ अमेरिकी दूतावास भी पूरी तरह से खालि हुआ। यह विषय अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के साथ भारत के लिए भी चिंता का विषय है।
तालिबान से अपनी दोस्ती के चलते हुए चीन और पाकिस्तान थोड़े अश्वस्त है और दसरी तरफ भारत अपने लोगों को काबुल से वापिस लाने में जुटा हुआ है।
भारत ने तालिबान को कभी भी मान्यता नहीं दी, पर इस साल तालिबान और भारत की बैकचैनल बातचीत की खबरें सुर्खियों में थी।
भारत और तालिबान के संबंध
भारत और तालिबान के बीच अब तक सीधी बात शुरू नहीं हुई है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारतिय मिशनों पर हुए हमलों में तालिबान मददगर था। 1999 में तालिबानियों ने आईसी-814 विमान का अपहरण किया था और बदले में जेश ए मोहम्मद के प्रमुख, अजहर अहमद ज़रगर, शेख अहमद उमर सईद को छोड़ने की मांग की थी।
ऐतिहासिक रूप से भारत और अफ़ग़ान के रिश्ते बहुत मधुर थे और भारत आगे भी इस रिश्ते को कायम रखना चाहता था। यह एक बड़ा कारण था भारत का तालिबान से बात ना करने का।
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में पुनर्निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं में 3 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। अफ़ग़ानिस्तान के निर्माण कार्यो में अनेक भारतीय पेशेवर काम कर रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से यह खबर आ रही है कि काफ़ी लोग अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर जा रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान में आज भी लगभग 1700 भारतीय रहते हैं। कुछ दिन पहले ही 129 यात्रियों से भरा विमान भारत लौटा है। ख़बरों के अनुसार अब काबुल एयरपोर्ट से सभी कमर्शियल फ़्लाइट रद्द कर दी गई हैं.
भारत को आगे क्या करना चाहिए?
कौटिल्य स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी की एक प्रोफेसर जिनका नाम शांति मैरियट डिसूज़ा है उन्होंने कहा है कि अब भारत को यकीन कर लेना चाहिए कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है। उन्होंने भारत के लिए 2 सुझाव दिए हैं पहला यह है की या तो भारत अफ़ग़ानिस्तान में बना रहे और दूसरा यह कि या तो सब कुछ बंद कर दे। अगर भारत दूसरा रास्ता अपनाता है तो पिछले 20 सालों में वहा पर भारत का जो भी योगदान था वो सब खत्म हो जाएगा।
डॉक्टर डिसूज़ा कहती है कि भारत को कोई भी फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लेना चाहिए जो भी फैसला हो वह सोच समझ कर लिया जाना चाहिए।
तालिबान के रवैए में बदलाव
पिछले कुछ दिनों में तालिबान की तरफ से भारत विरोधी कोई बयान सामने नहीं आया है। तालिबान ने भारत के लिए कभी गलत नहीं कहा है।
तालिबान में एक गुट ऐसा भी है जो भारत के प्रति सहयोग वाला रवैया रखता है. अब तक तालिबान के कब्ज़े के बाद काबुल से किसी भी खून खराबे वाली घटना की खबर सामने नहीं आई है। बीबीसी से बातचीत के दौरान तालिबान के प्रवक्ता ने कहा है कि महिलाओं को पढ़ाई और काम करने की इजाज़त होगी।
भारत के लिए चुनौतियाँ
कहा जाता है की धार्मिक मदरसो में तालिबान आंदोलन उभरा। सुन्नी इस्लाम और कट्टर मान्यताओं का प्रचार इस आंदोलन में किया जाता था।
प्रोफेसर पंत का ये मानना है की तालिबान का अफ़ग़ानी शासन चलाने का कोई मॉडल नहीं हैं । वह अपनी कट्टरपंथी विचारधारा को लागू करना चाहते हैं। उनका एक एजेंडा यह था कि उनको अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से हटाना था जिसमे वह सफल हो गए हैं लेकिन इसके बाद भी उनके तमाम गुटों में एकता बनी रहेगी ये कहना अभी मुश्किल है।
अफगानिस्तान में जब तक नई रजनैतिक व्यवस्था की प्रक्रिया शूरु नहीं हो जाती तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है।
भारत और तालिबान के बीच विचारधारा का टकराव हो सकता है।
जैश, लश्कर जैसे अतंकवादी गुट जो तालिबान के साथ संबंध रखते हैं उनकी छवि अब तक भारत विरोधी रही है। दूसरी परेशानी यह है कि व्यापार और आर्थिक विकास के मसले पर दिकक्तें आ सकती है। तीसरी दिक्कत चीन और पाकिस्तान के साथ हो सकती है जिनके तालिबान के साथ संबंध पहले से ही अच्छे हैं।