रचना प्रियदर्शिनी-
इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान ने बदलाव की एक नयी ताबीर लिखी है. वहां देश का पहला किन्नर मदरसा खोला गया है. इस मदरसे वाली शख्स रानी खान भी स्वय्रं भी एक किन्नर हैं. 13 साल की उम्र में उनके परिवार ने बेदखल कर दिया था और उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया गया था. सत्रह साल की उम्र में, वह एक ट्रांसजेंडर समूह में शामिल हो गईं और शादियों में नृत्य करके पैसा कमाना शुरू कर दिया. वह अब लगभग 35 साल की हैं. उन्होंने इस्लाम में शामिल होने और अपने जैसे अन्य लोगों की मदद करने के लिए पेशा छोड़ दिया.
घर-परिवार और समाज द्वारा दुत्कारे जाने के बावजूद रानी ने कभी भी अपना पेट पालने के लिए अपने जमीर से समझौता नहीं किया. वह नृत्य किया, गाना गाया, ताली बजायी और लोगों को हंसा कर अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करती रहीं. कितनी भी मजबूरी हो, वह वेश्यावृत्ति के धंधे में नहीं जाना चाहती. रानी की मानें, तो अब वह किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को नाचते गाते और तालियां बजाते हुए लोगों को आकर्षित करने का साधन नहीं बनने देगीं. इसी भावना के साथ रानी खान ने करीब दो साल पहले अपने पूरे जीवन की बचत का उपयोग करके ट्रांसजेंडर लोगों के लिए दो कमरों का एक मदरसा खोला है. यह पाकिस्तान का पहला ट्रांसजेंडर स्कूल है, जिसे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक मील का पत्थर कहा जा सकता है. पिछले साल अक्टूबर रानी ने खुद कुरान का अध्ययन किया और कुछ समय तक एक धार्मिक मदरसा में पढ़ाया. रानी का उद्देश्य लोगों को तृतीय लिंग और इस्लाम की बेहतर समझ देना है.
पढ़ाई के साथ-साथ हुनर का भी मिलता है प्रशिक्षण
रानी खान खुद अपने मदरसे में पढ़ाती हैं. वह अपने सिर पर एक लंबी सफेद शॉल पहनती हैं और रोजाना कुरान पढ़ाती हैं. मदरसे में कढ़ाई और बुनाई भी सिखायी जाती है, ताकि ट्रांसजेंडर अपने हुनर के बूते कमाई कर सके. हालांकि आधिकारिक तौर पर किन्नरों को धार्मिक मदरसों में पढ़ने या मस्जिदों में प्रार्थना करने पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता है.
बांग्लादेश में भी किन्नरों का मदरसा
करीब साल भर पहले बांग्लादेश की राजधानी ढाका में भी एक तीन मंजिला इमारत की तीसरी मंजिल पर किन्नर समुदाय के लिए देश का पहला मदरसा खोला गया है, जिसका नाम ‘दवातुल कुरान तृतीय लिंग मदरसा’ रखा गया है. इस मदरसे में विभिन्न आयुवर्ग वाले करीब 100 किन्नर एक साथ बैठ कर पढ़ाई कर सकते हैं. शुरुआत में यहां 40 किन्नरों ने अपना नामांकन करवाया है. इससे पूर्व शहर के कुछ आठ स्थानों पर किन्नरों को इस्लामिक शिक्षा का प्रशिक्षण देने का काम चल रहा था, पर उनके लिए कोई मदरसा विशेष नहीं खोला गया था. इस मदरसा के मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद की मानें, तो ट्रांसजेंडर भी इंसान होते हैं. उन्हें भी शिक्षा प्राप्त करने और सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है.” (किन्नर मदरसा)
इस्लामिक शिक्षा देने के अलावा, किन्नर मदरसा प्रबंधन समुदाय के लिए तकनीक शिक्षा की शुरुआत करने पर भी विचार कर रहा है. बांग्लादेश के ‘हिजड़ा कल्याण फाउंडेशन’ की अध्यक्ष मीतू का कहना है- ”यदि किन्नरों को नौकरी मिल जाती है, तो वे कल को हमारे लिए धरोहर बन जायेंगे.” (किन्नर मदरसा)
बता दें कि बांग्लादेश सरकार का अनुमान है कि देश में 10,000 किन्नर हैं जबकि अधिकार समूहों का कहना है कि उनकी आबादी 15 लाख से भी अधिक हो सकती है. वर्ष 2013 में सरकार ने हिजड़ा समुदाय को ‘तृतीय लिंग’ का सदस्य मान लिया था. अगले ही वर्ष वहां के चुनाव आयोग ने भी मतदाता पत्र में ‘तृतीय लिंग’ के रूप में किन्नरों को पंजीकृत करना आरंभ कर दिया. साथ ही, उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार भी दे दिया गया.