नई दिल्ली : नोटबंदी के बाद बीमा और म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय बचत में धन प्रवाह में बढ़ोतरी देखी जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उप गर्वनर विरल आचार्य ने शनिवार को यह बातें कही।
आचार्य ने वित्त मंत्रालय द्वारा यहां आयोजित दिल्ली इकॉनमिक्स कॉन्क्लेव 2017 में कहा, नोटबंदी के नतीजों को समझने में अभी कई साल लगेंगे। मुझे ऐसा प्रतीत होते है कि वित्तीय संपत्ति जुटाने में बदलाव हुआ है और अब काले धन में लेनदेन आसान नहीं है।
उन्होंने कहा, नवंबर से बीमा प्रीमियम का संग्रहण बढ़ा है। अगर यह बढ़ता है तो वित्तीय संपत्तियों के मूल्यांकन को बदल देगा।
उन्होंने कहा कि अब कर बचाने के लिए बांड रखना आर्कषक नहीं रह गया है।
आचार्य के मुताबिक पहले लोगों में अचल संपत्ति और सोने में निवेश कर काला धन छुपाने का विचार होता था।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी का असर समझने में अभी कई साल लगेंगे।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री केनेथ रोगोफ ने कहा कि नोटबंदी में खामी थी, इसे धीरे-धीरे लागू करना चाहिए। वे फिलहाल हावर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं।
उन्होंने कहा, भारतीय नोटबंदी में कुछ कमियां थी, मेरी किताब नकद का अभिशाप में मैने लिखा है कि बड़े नोट को बाजार से वापस खींचने में 5-7 साल लगाना चाहिए, लेकिन भारत में इसे रातोंरात कर दिया गया।
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आचार्य ने वित्त मंत्रालय द्वारा यहां आयोजित दिल्ली इकॉनमिक्स कॉन्क्लेव 2017 में कहा, नोटबंदी के नतीजों को समझने में अभी कई साल लगेंगे। मुझे ऐसा प्रतीत होते है कि वित्तीय संपत्ति जुटाने में बदलाव हुआ है और अब काले धन में लेनदेन आसान नहीं है।
उन्होंने कहा, नवंबर से बीमा प्रीमियम का संग्रहण बढ़ा है। अगर यह बढ़ता है तो वित्तीय संपत्तियों के मूल्यांकन को बदल देगा।
उन्होंने कहा कि अब कर बचाने के लिए बांड रखना आर्कषक नहीं रह गया है।
आचार्य के मुताबिक पहले लोगों में अचल संपत्ति और सोने में निवेश कर काला धन छुपाने का विचार होता था।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी का असर समझने में अभी कई साल लगेंगे।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री केनेथ रोगोफ ने कहा कि नोटबंदी में खामी थी, इसे धीरे-धीरे लागू करना चाहिए। वे फिलहाल हावर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं।
उन्होंने कहा, भारतीय नोटबंदी में कुछ कमियां थी, मेरी किताब नकद का अभिशाप में मैने लिखा है कि बड़े नोट को बाजार से वापस खींचने में 5-7 साल लगाना चाहिए, लेकिन भारत में इसे रातोंरात कर दिया गया।
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