नई दिल्ली : पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें मच्छरों की वजह से होती हैं. हर साल 7.25 लाख लोग मच्छरों की वजह से मरते हैं. साल 2014 में भारत में भी 561 डेंगू से मरे तो वहीं 220 लोग मलेरिया से मरे.
इस दिशा ने चीन ने इन पर काफी हद तक काबू पा लिया है. ऐसा उसने दुनिया की उस सबसे बड़ी फैक्ट्री की मदद से किया जिसे खासतौर पर मच्छरों से लड़ने के लिए बनाया गया है. इस फैक्ट्री में मच्छरों के दुश्मन पैदा किया जाते हैं.
चीन ने मच्छरों को मारने के लिए एक फैकट्री में दुश्मन मच्छरों को पैदा किया. इस फैक्ट्री में पैदा हुए 2 करोड़ मच्छरों को हर हफ्ते देश के अलग-अलग हिस्सों में छोड़ा जाता है. फैक्ट्री में पैदा हुए ये सभी नर मच्छर होते हैं.
लैब में इन मच्छरों के जीन में बदलाव कर दिया जाता है. फिर इन्हें उन जगहों पर छोड़ दिया जाता है जहां मच्छर पाए जाते हैं. इन जेनेटिकली मॉडिफाइड नर मच्छर जब मादा से मिलते हैं तो इनसे पैदा होने वाले लार्वे अपने आप मर जाते हैं यानि ना लार्वा होगा.
चीन के इस तरीके ने अपने पहले ही ट्रायल में इसने ज़बरदस्त कामयाबी पायी थी. जिस इलाके में इन मच्छरों को छोड़ा गया, कुछ दिनों बाद वहां 90 फिसदी मच्छर कम हो गए. जिसके बाद चीन ने इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करना शुरु कर दिया.
भारत में भी ऐसे मच्छरों पर काम शुरु हो चुका है. मुंबई की एक कंपनी GBIT को ऐसे मच्छरों के ट्रायल की मंजूरी मिल चुकी है. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल इलाज के लिए मलेरिया पर 11 हज़ार 640 करोड़ और डेंगू पर करीब 6 हज़ार करोड़ खर्च किए जाते हैं.
मच्छरों की संख्या वहां बढ़ती है जहां पानी जमा होता है. गांवों में मच्छरों के पनपने के लिए खेतों से बेहतर कोई और जगह नहीं है. खासकर चावल के खेतों में इसलिए चीन में इस खास घास की मदद ली गयी. इसका नाम है Azolla microphylla. इन्हें चावल के खेतों में उगाया दिया जाता है. कुछ ही दिनों में ये पूरे खेत में फैल जाते हैं जिससे मच्छरों के लार्वे पनप ही नहीं पाते.
भारत में भी इनका इस्तेमाल शुरु किया गया है. तमिलनाडु में किसान चावल के खेतों में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. क्योंकि मच्छरों के प्रजनन को रोकने के अलावा चावल के पौधों को भी इससे फायदा मिलता है. मच्छरों की वजह से लोगों पर एक तो इससे होने वाली बीमारी और दूसरा इससे बचाव का खतरे की दोहरी मार पड़ती है.
मच्छरों से होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए सरकार ने पिछले साल 43484 करोड़ रुपए के बजट को मंज़ूरी दी. जबकि पिछले साल देशभर के लोगों ने 4400 करोड़ रुपए मच्छरों को भगाने वाले उत्पादों को खरीदने पर खर्च किए.
दुनियाभर में मच्छरों की करीब साढ़े तीन हज़ार प्रजातियां हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 6 फीसदी मादा मच्छर ही इंसानों के लिए खतरनाक हैं. इनकी वजह से दुनिया की करीब आधी आबादी को मच्छरों से होने वाली बीमारियों का रिस्क है. इंसान साल भर में जितने इंसानों को मारते हैं उससे करीब दो गुना ज्यादा इंसानों की जान मच्छरों की वजह चली जाती है.